दांपत्य जीवन बहाल करने का अधिकार एक तरह से पितृसत्तात्मक सिद्धांत को बल देता है महिला को जागीर की तरह बताता है और ये प्रावधान अनुच्छेद-15 और 21 का उल्लंघन करता हैं।
क्या किसी शादीशुदा महिला को अपने पति के साथ दांपत्य जीवन में रहने के लिए बाध्य किया जा सकता है?
Supreme Court सुप्रीम कोर्ट के सामने ये बड़ा सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को महत्वपूर्ण बताया है जिसमें दांपत्य जीवन बहाल करने के कानूनी प्रावधान को चुनौती दी गई है।
हिंदू मैरेज ऐक्ट (Hindu Marriage Act) और स्पेशल मैरेज ऐक्ट (Special Marriage Act) के तहत दांपत्य जीवन बहाल करने और सहजीवन (सेक्शुअल रिलेशनशिप) को बहाल करने का अधिकार है। इस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को अहम बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 10 दिनों में जवाब दाखिल करने को कहा है।
महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न-
Supreme Court सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने केंद्र सरकार से इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का वक्त मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह दांपत्य जीवन बहाल करने संबंधित प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना हलफनामा पेश करें। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस मामले में लिखित जवाब के लिए वक्त दिया जाना चाहिए। अटॉर्नी जनरल को कोर्ट ने इस मामले में सहयोग करने को कहा हुआ है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ये मामला पूरी तरह से कानूनी सवाल का है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अडिशनल सॉलिसिटर जनरल से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दांपत्य जीवन बहाल करने संबंधित प्रावधान को चुनौती वाली याचिका महत्वपूर्ण विषय पर है, आप जवाब दें। तब अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम इस मामले में हफ्ते में हलफनामा दायर करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 22 जुलाई की तारीख तय कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-9 को चुनौती दी गई है जो दांपत्य जीवन बहाल करने का प्रावधान करता है। साथ ही स्पेशल मैरेज ऐक्ट की धारा-22 को चुनौती दी गई है जिसमें यही प्रावधान है।
सुप्रीम कर्ट इस महत्वपूर्ण सवाल को एग्जामिन करेगा।
याचिकाकर्ता ने अर्जी दाखिल कर हिंदू मैरेज ऐक्ट और स्पेशल मैरेज ऐक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया है कि ये मालिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि किसी को भी किसी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दाखिल याचिका पर केंद्र सरकार को दो साल पहले नोटिस जारी किया था और मामला तीन जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया था। साथ ही अटॉर्नी जनरल से मामले में सहयोग करने को भी कहा गया था। गुरुवार को तीन जजों की बेंच के सामने ये मामला सुनवाई के लिए आया था।
याची ने कहा प्रावधान निजता के अधिकार का करता है उल्लंघन-
याचिकाकर्ता ने हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-9 और स्पेशल मैरेज ऐक्ट की धारा-22 के संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। इन दोनों धाराओं में दांपत्य जीवन को बहाल करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि जीवन के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है। किसी के सेक्शुअल स्वायत्तता का यह प्रावधान उल्लंघन करता है। गरिमा के साथ और निजता के साथ जीवन जीने के अधिकार का ये प्रावधान उल्लंघन करता है। यह राज्य द्वारा एक तरह से दंडात्मक कार्रवाई की तरह है।
गुजरात नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी की दो स्टूडेंट्स की ओर से अर्जी दाखिल कर दांपत्य जीवन को बहाल करने के प्रावधान को चुनौती दी गई है। अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संवैधानिक बेंच के उस फैसले का हवाला दिया गया जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। साथ ही कहा गया कि हिंदू मैरेज ऐक्ट और स्पेशल मैरेज ऐक्ट के प्रावधान में महिला को अपने पति के साथ सहजीवन बहाल करने के लिए बाध्य किया जाता है। दांपत्य जीवन के दो महत्वपूर्ण अवयव हैं, सहजीवन और शारीरिक संबंध। मौजूदा प्रावधान के तहत इस बात के लिए बाध्य किया जा सकता है कि दांपत्य जीवन बहाल किया जाए। आदमी या औरत कोई भी दांपत्य जीवन बहाल करने का आदेश होने के बाद दूसरे के खिलाफ एक्शन ले सकता है।
क्या है प्रावधान?
हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-9 के मुताबिक अगर पति या पत्नी बिना किसी वैध कारण के एक दूसरे का साथ छोड़कर अलग रह रहे हों तो दूसरा पक्ष दंपत्य जीवन बहाल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। अगर कोर्ट याचिकाकर्ता की दलील से संतुष्ट हो जाता है और दूसरे पक्ष के बारे में ये पता चलता है कि वह बिना किसी उचित कारण के अलग रह रहे हैं तो फिर अदालत साथ रहने के लिए यानी दांपत्य जीवन बहाल रखने के लिए आदेश पारित कर सकता है। स्पेशल मैरेज ऐक्ट की धारा-22 में भी यह प्रावधान है।
याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई है कि हिंदू मैरेज ऐक्ट की धारा-9 और स्पेशल मैरेज ऐक्ट की धारा-22 के प्रावधान को खारिज किया जाए। साथ ही कहा गया है कि इस प्रावधान को लागू करने वाले सीपीसी के ऑर्डर और रूल्स को भी खारिज किया जाए। याचिकाकर्ता ने कहा है उक्त प्रावधान मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और ये प्रावधान इंग्लिश लॉ से लिया गया है और पत्नी को जागीर के तौर पर माना जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद-15 के मुताबिक कानून के सामने सब बराबर हैं। लेकिन दांपत्य जीवन बहाल करने का अधिकार एक तरह से पितृसत्तात्मक सिद्धांत को बल देता है महिला को जागीर की तरह बताता है और ये प्रावधान अनुच्छेद-15 और 21 का उल्लंघन करता हैं।