क्रिप्टोकरेंसी घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत, ₹35 लाख जमा करने की शर्त

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: बिना ठोस कारण बताए मेडिकल राय के आधार पर सेवा से बर्खास्तगी और विकलांगता पेंशन से इनकार अवैध

सुप्रीम कोर्ट ने क्रिप्टोकरेंसी घोटाले से जुड़े एक मामले में आरोपी को ₹35 लाख जमा करने की शर्त पर जमानत दी। हालांकि, पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि उसने पहले उच्च न्यायालयों द्वारा जमानत पर इस तरह की शर्तें लगाने की निंदा की थी

मामले की पृष्ठभूमि

मामले में कुल घोटाले की राशि लगभग ₹4 करोड़ थी, लेकिन आरोपी (अपीलकर्ता) से सिर्फ ₹35 लाख जुड़े होने का दावा किया गया।

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि करीब 2000 निवेशकों ने इस क्रिप्टोकरेंसी योजना में ₹4 करोड़ गंवाए, जिसे अपीलकर्ता और अन्य सह-आरोपियों ने संचालित किया था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

न्यायमूर्ति जेबी पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा,
“हम इस तथ्य से अवगत हैं कि हम उच्च न्यायालयों द्वारा जमानत पर ऐसी शर्तें लगाने की निंदा करते रहे हैं। लेकिन इस मामले की विशिष्ट परिस्थितियों को देखते हुए, हम बाध्य हैं कि ऐसी शर्तें लगाई जाएं।”

कानूनी प्रक्रिया और न्यायालय की दलीलें

  1. आरोपी के खिलाफ धारा 420, 201, 120-बी और 34 आईपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
  2. पांच लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया था और मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) के समक्ष लंबित था।
  3. आरोपी दिसंबर 2023 से हिरासत में था
  4. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने गंभीर आर्थिक अपराध और निवेशकों के नुकसान को देखते हुए उसकी नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

  • न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष 189 गवाहों से जिरह करने की योजना बना रहा था, लेकिन अब तक सिर्फ एक गवाह की गवाही हुई थी
  • सुनवाई की धीमी गति को देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि मुकदमे की प्रक्रिया लंबी चलेगी, जो जमानत का फैसला करने में महत्वपूर्ण कारक है।
  • साथ ही, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अधिकार क्षेत्र में आने वाले अपराधों के लिए अधिकतम सजा 7 वर्ष निर्धारित है।
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सीआरपीसी की धारा 437(6) पर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या

  • सीआरपीसी की धारा 437(6) यह प्रावधान करती है कि यदि गैर-जमानती अपराध के मुकदमे में सबूतों की शुरुआत के 60 दिनों के भीतर सुनवाई पूरी नहीं होती, तो आरोपी को सशर्त जमानत दी जा सकती है
  • लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान पूर्ण रूप से अनिवार्य नहीं है और मजिस्ट्रेट के पास विशिष्ट कारणों के आधार पर जमानत से इनकार करने का विवेकाधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

  • छह महीने के भीतर यदि आरोपी ₹35 लाख जमा नहीं करता है, तो उसकी जमानत स्वतः निरस्त हो जाएगी
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए जमानत मंजूर कर दी

वाद शीर्षक – सुभेलाल उर्फ सुशील साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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