CrPC Sec 313: आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने का मूल्यवान अधिकार देता है और Article 21 के तहत संवैधानिक अधिकार है – SC

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मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायलय Madhya Pradesh High Court के मई 2017 के फैसले को चुनौती देने वाले अपीलकर्ता जय प्रकाश तिवारी की दोषसिद्धि और सजा को खारिज कर दिया।

शीर्ष अदालत द्वारा शिकायतकर्ता की गवाही और सुने हुए सबूत के आधार पर हत्या के प्रयास के दोषी व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि अनाज को भूसे से अलग करना अदालत का गंभीर कर्तव्य है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को एक आरोपी के बचाव पर विचार करने की जरूरत है, जिसे वे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं, लेकिन सरसरी तौर पर नहीं।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमना न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मई 2017 के फैसले को चुनौती देने वाले अपीलकर्ता जय प्रकाश तिवारी की दोषसिद्धि और सजा को खारिज कर दिया, जिसने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें उसे हत्या के प्रयास के मामले में दोषी ठहराया गया था।

शीर्ष कोर्ट ने कहा, अनुमानों पर आधारित था मामला-

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमना न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला मात्र अनुमानों और अंदाजों पर आधारित था और आरोपी द्वारा पेश किए गए सबूतों को अदालत ने आकस्मिक तरीके से निपटाया। इसे देखते हुए कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह अनाज को भूसे से अलग करे और सबूतों के ढेर से सच्चाई निकाले। शीर्ष अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता Criminal Procedure Code की धारा 313 Sec 313 का उद्देश्य मुकदमे के दौरान उसके खिलाफ सामने आई प्रतिकूल परिस्थितियों को समझाने का एक उचित अवसर प्रदान करना है।

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सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता–आरोपी द्वारा पेश किए गए वैकल्पिक संस्करण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। धारा 313 सीआरपीसी एक आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने का एक मूल्यवान अधिकार प्रदान करती है और इसे संवैधानिक अधिकार से परे माना जा सकता है, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष सुनवाई का संवैधानिक अधिकार है।

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि-

“नीचे की अदालतें अपीलकर्ता द्वारा अपने धारा 313 के बयान में पेश किए गए बचाव पक्ष की जांच करने में विफल रही हैं। संहिता की धारा 313 का उद्देश्य अदालत और आरोपी के बीच सीधा संवाद स्थापित करना है। धारा 313 सीआरपीसी Sec 313 CrPC का उद्देश्य अभियुक्त को मुकदमे के दौरान उसके खिलाफ सामने आई प्रतिकूल परिस्थितियों को समझाने का एक उचित अवसर प्रदान करना है। एक उचित अवसर में सभी प्रतिकूल साक्ष्यों को प्रश्नों के रूप में प्रस्तुत करना शामिल है ताकि अभियुक्त को अपना बचाव व्यक्त करने और अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर दिया जा सके।”

सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त के मद्देनजर अपील की अनुमति दी।

केस टाइटल – जय प्रकाश तिवारी बनाम मध्य प्रदेश राज्य
केस नंबर – आपराधिक अपील सं 2018 का 704
कोरम – सीजेआई न्यायमूर्ति एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली

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