⚖️ भ्रष्टाचार के मामलों में न्यूनतम सजा को घटाना अनुच्छेद 142 के तहत भी अवैध: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी अधिनियम में न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है, तो जब तक उस वैधानिक प्रावधान को चुनौती नहीं दी जाती, उसे अनुच्छेद 142 के तहत भी कम नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि ऐसा करना “न्यायपालिका द्वारा विधायिका का कार्य करने” के समान होगा, जो संविधान सम्मत नहीं है।
यह टिप्पणी न्यायालय ने Dashrath बनाम महाराष्ट्र राज्य (Neutral Citation: 2025 INSC 654) में की, जिसमें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषसिद्ध एक आरोपी द्वारा सजा में रियायत की मांग को लेकर दायर अपील पर सुनवाई हो रही थी।
📜 पृष्ठभूमि
बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी पर धारा 7 के तहत दो वर्ष का सश्रम कारावास एवं ₹2,000 का जुर्माना तथा धारा 13(1)(d) सहपठित धारा 13(2) के तहत एक वर्ष का सश्रम कारावास एवं ₹1,000 के जुर्माने की सजा को सही ठहराया था। आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सजा में राहत की मांग की थी।
⚖️ न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की खंडपीठ ने कहा:
“जहां विधि द्वारा न्यूनतम सजा निर्धारित है, वहां अनुच्छेद 142 के अंतर्गत प्रदत्त विशेष शक्तियों का प्रयोग कर भी उसे घटाया नहीं जा सकता। यह संसद द्वारा बनाए गए विधिक प्रावधान के विपरीत होगा और न्यायालय को विधायिका की भूमिका में ला देगा, जो विधिसम्मत नहीं है।”
👨⚖️ अपीलकर्ता की दलीलें और कोर्ट की प्रतिक्रिया
अपीलकर्ता के वकील ने कहा कि घटना को 25 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है और आरोपी अब 70 वर्ष से अधिक आयु का है। अतः यदि दोषसिद्धि बनी रहे, तो भी सजा में नरमी बरती जाए ताकि उसे अब जेल न जाना पड़े। इसके लिए उन्होंने H.P. Venkatesh बनाम कर्नाटक राज्य (2017) का हवाला दिया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने Venkatesh मामले को इस प्रकरण पर लागू नहीं माना और कहा:
“यह ऐसा असाधारण मामला नहीं है जहां न्याय को दया के साथ मिलाना आवश्यक हो।”
🧾 कानूनी विवेचना
कोर्ट ने माना कि अपराध की तिथि के अनुसार:
- धारा 7 के तहत न्यूनतम सजा: 6 माह, अधिकतम: 7 वर्ष
- धारा 13(1)(d)/13(2) के तहत न्यूनतम: 1 वर्ष, अधिकतम: 7 वर्ष
अतः आरोपी को न्यूनतम से ऊपर लेकिन अधिकतम से कम सजा दी गई थी — अर्थात दोनों धाराओं में क्रमशः 2 वर्ष और 1 वर्ष का सश्रम कारावास, जो साथ-साथ चलने थे।
फिर भी, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया:
“भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध अलग प्रकृति के होते हैं। कोई भी न्यायालय — विशेषकर यह न्यायालय — ऐसी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं कर सकता, जो लोक सेवकों द्वारा उनके अधिकार के दुरुपयोग के रूप में सामने आती हैं।”
🧘 न्याय और सहानुभूति का संतुलन
कोर्ट ने कहा कि:
“घटना की तिथि, आरोपी की वृद्धावस्था, दीर्घकालिक मानसिक तनाव और लंबी न्यायिक प्रक्रिया को देखते हुए, न्यूनतम सजा की अवधि ही न्याय के हित में पर्याप्त होगी।”
📌 निर्णय
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार करते हुए आदेश दिया:
“धारा 7 के तहत दो वर्ष की सजा को घटाकर एक वर्ष की सादा कैद (S.I.) में परिवर्तित किया जाता है। परंतु धारा 13(1)(d) के तहत दी गई सजा यथावत रहेगी। दोनों सजाएं एक साथ (concurrently) चलेंगी।”
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