दिल्ली उच्च न्यायलय ने निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा कहा:  चेक बाउंस मामले में गंभीर परिणाम भुगतने होंगे-

दिल्ली उच्च न्यायलय ने निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा कहा: चेक बाउंस मामले में गंभीर परिणाम भुगतने होंगे-

निचली अदालत (Lower Court) के फैसले को बरकरार रखते हुए चेक बाउंस से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने सख्त आदेश दिया है।

न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर (Hon’ble Justice Rajnish Batnagar) की पीठ ने कहा कि यदि नोटिस जारी करने और अवसर देने के बावजूद भुगतान नहीं किया गया तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पीठ ने कहा कि ऐसा व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बाध्य है। पीठ ने उक्त टिप्पणी व आदेश एक पुनरीक्षण याचिका पर विचार करते हुए दिया।

क्या है मामला-

याचिकाकर्ता संजय गुप्ता ने कोटक महिंद्रा बैंक (Kotak Mahindra Bank) से 4.80 लाख रुपये का एक महीने के लिए लोन लिया था। इसके बदले याचिकाकर्ता संजय ने बैंक के नाम पर 13 फरवरी 2017 को चेक दिया था। बैंक ने जब चेक भुगतान के लिए लगाया तो उसमें राशि उपलब्ध नहीं थी। बैंक ने 15 दिन में उक्त चेक का भुगतान करने के लिए नोटिस जारी किया, लेकिन याची ने भुगतान नहीं किया। इसके बाद बैंक ने मामला दर्ज कराया था।

याचिकाकर्ता संजय गुप्ता के अधिवक्ता ने उन्हें दोषी ठहराए जाने से जुड़े मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) के नौ सितंबर 2019 को आदेश को रद करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। इसके पहले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 26 मार्च 2021 को मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) के निर्णय को बरकरार रखा था। मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए तीन महीने की साधारण सजा सुनाते हुए सात लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। उक्त धनराशि शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में भुगतान करनी थी। साथ ही यह भी आदेश दिया कि चार माह के अंदर जुर्माना राशि नहीं देने पर तीन माह की अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी।

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उच्च न्यायलय की पीठ ने नोट किया कि याची ने विवादित चेक को लेकर अलग रुख अपनाते हुए दावा किया था कि उक्त चेक खो गया था और उसने वर्ष 2014 में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई थी। हालांकि शिकायत से जुड़ा रिकार्ड वह अदालत में पेश नहीं कर सका। अदालत ने नोट किया कि याची ने न तो संबंधित बैंक को खोने वाले चेक के बारे में सूचित किया और न ही बैंक से उक्त चेक के भुगतान को रोकने का अनुरोध किया।

पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसे में 26 मार्च को दिए गए निचली अदालत के निर्णय में कोई कमी नहीं है और इसे बरकरार रखते याचिका खारिज की जाती है।

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