काम करने के दौरान तनाव के कारण हुई मौत पर एम्लॉयर को मुआयजा देना ही पड़ेगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

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Bombay High Court बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक नियोक्ता (Employer) को एक ट्रक ड्राइवर के परिजनों को Compensation मुआवजा देने का निर्देश दिया।

अदालत ने कहा कि काम करने के दौरान तनाव के कारण अंततः ट्रक ड्राइवर की मृत्यु हो गई।

न्यायमूर्ति एनजे जमादार ने कहा कि मृतक ड्राइवर को पड़े दिल के दौरे को काम करने के दौरान हुई दुर्घटना कहा जा सकता है, जैसा कि कर्मकार मुआवजा अधिनियम की धारा 3 के तहत माना जाता है।

विषय आलोक्य –

मृतक विशाखा सिंह की 3 नवंबर, 2003 को रांची से मुंबई लौटते हुए ट्रक चलाते समय नासिक में दिल के दौरे कारण मृत्यु हो गई। परिवार ने दावा किया कि सिंह घटना से पहले 17-18 दिनों तक लगातार सड़क पर थे और उनकी मृत्यु काम के दबाव के कारण हुई।

Labour Court लेबर कोर्ट ने माना कि ड्राइवर की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है। निधन को एक ड्राइवर के रूप में उनकी नौकरी से जोड़ने का कोई सबूत नहीं था, खासकर तब जबकि किसी क्लीनर की जांच नहीं की गई थी। कोर्ट ने माना निधन के समय केवल ट्रैवल कंपनी में काम करना ही काफी नहीं था।

न्यायालय के विचार बिन्दु –

उच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पाया कि आयुक्त, श्रम न्यायालय ने शकुंतला चंद्रकांत श्रेष्ठ बनाम प्रभाकर मारुति गरावली में शीर्ष अदालत के फैसले पर गलत तरीके से भरोसा किया जिसमें दिल का दौरा पड़ने से मरने वाले एक सफाईकर्मी को राहत देने से इनकार कर दिया।

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हाईकोर्ट ने दोनों मामलों में अंतर किया, यह देखते हुए कि ट्रक क्लीनर की नौकरी ट्रक ड्राइवर की नौकरी की तरह तनावपूर्ण नहीं है।

फैसले के अनुसार, ऐसे मामलों का फैसला करते समय, अदालत को इस बात पर अवश्य ही विचार करना चाहिए कि क्या काम के दौरान तनाव उत्पन्न हो रहा है, काम की प्रकृति क्या है (Nature off work ) और यदि चोट (इस मामले में मृत्यु) तनाव के कारण बढ़ जाती है।

अदालत ने कहा कि ट्रक घटना से आठ दिन पहले रांची से मुंबई के लिए रवाना हुआ था, जिसका अर्थ है कि ड्राइवर को बिना किसी बैकअप ड्राइवर के 1800 किलोमीटर की दूरी तय करने की उम्मीद थी। ट्रैवल कंपनी के मालिक तरविंदर सिंह ने गवाही दी थी कि उनके ड्राइवर ब्रेक लेते समय थकते नहीं हैं। मृतक ड्राइवर स्वाथ्य और काम के प्रेशर के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुई।

पीठ ने इस प्रकार श्रम न्यायालय (Labour Court) के आदेश को रद्द कर दिया और 2007 में ड्राइवर के परिजनों द्वारा दायर अपील की अनुमति दी। कोर्ट ने ट्रैवल कंपनी के मालिक और बीमा कंपनी को 3 दिसंबर, 2003 से 12% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 2,78,260 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। अदालत ने मालिक को 25,000 रुपये के जुर्माने का भुगतान करने का भी आदेश दिया।

कोर्ट ने कहा, “उपरोक्त वास्तविकता उस स्थिति की भयावहता को कम नहीं करते हैं, जो एक ट्रक चालक (ड्राइवर) को लंबी और कठिन यात्रा के कारण लगभग 18 दिनों तक निर्बाध रूप से सामना करना पड़ता है। लगभग 3600 किलोमीटर की दूरी पर ड्राइविंग से तनाव पैदा होने की उम्मीद की जा सकती है।

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केस टाइटल – श्रीमती हरविंदर कौर विशाखा सिंह बनाम तरविंदर सिंह के सिंह
केस नंबर – अपील संख्या 1476 ऑफ 2007

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