वाक्या रोहिणी कोर्ट में हत्या की कोशिश से जुड़े एक मामले में आरोपी को अंतरिम जमानत दिलाने के लिए अदालत पहुंचा एक वकील वहां जाकर खुद एक ‘अपराध’ कर बैठा। वकील को अदालत में ‘आवाज ऊंची’ करने और एक जज की चेतावनियों को अनसुना करने का खामियाजा भुगतना पड़ा। उसे अब अपने इस बर्ताव की वजह से ‘अदालत के अपमान’ के आरोप में केस का सामना करना होगा।
यह पूरा वाकया पिछले हफ्ते का और रोहिणी कोर्ट में अडिशनल सेशन जज शिवाजी आनंद की कोर्ट का है। आरोपी वकील यहां नवल चड्ढा नाम के एक आरोपी/आवेदक की अंतरिम जमानत अर्जी लेकर पेश हुआ था। उसने आवेदक को तमाम तरह की बीमारियां बताते हुए दो महीने की जमानत मांगी। अदालत ने जांच एजेंसी और जेल अधिकारियों से आरोपी की मेडिकल रिपोर्ट्स को वेरिफाई करने का निर्देश दिया और सुनवाई के लिए अगली तारीख तय कर दी।
सेशन जज के आदेश के मुताबिक, बहस खत्म होने और अगली तारीख बताए जाने के बाद भी आरोपी का वकील अभियोजन के वकील के साथ ऊंची आवाज में बहस करता रहा और आरोप लगाता रहा कि वह उसका मजाक बना रहे हैं। अदालत से कई बार चेतावनी मिलने के बाद भी वकील की आवाज बढ़ती रही।
इस बीच अदालत ने अगले केस में सुनवाई शुरू कर दी। वकील बहस के लिए जज के डायस के पास भी आ गए। लेकिन अपनी ऊंची आवाज से अदालत की कार्यवाही में बाधा डाल रहे वकील नहीं माने और चिल्लाते रहे। वकील के ऐसे बर्ताव को अदालत ने गंभीरता से लिया। उससे लिखित में इसका जवाब मांगा। वह एक कैदी की ओर से पेश हुआ था जो हत्या की काशिश, धमकाने, आपराधिक साजिश के साथ आर्म्स एक्ट के प्रावधानों में दर्ज मामले में एक आरोपी है।
10 सितंबर को मामले में अगली सुनवाई पर पुलिस और जेल अधिकारियों की रिपोर्ट तो अदालत के सामने आई। पर इस वकील की सफाई नहीं। कारण पूछे जाने पर वकील ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया। जज ने अपने आदेश में कहा, उसे अपनी इस हरकत पर कोई पछतावा तक नहीं है। लिहाजा, अपराध पर खुद से संज्ञान लेते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि इस वकील के खिलाफ आईपीसी की धारा 228 और 179 के तहत कार्यवाही के लिए केस दर्ज कर उस पर सुनवाई शुरू की जाए। इन अपराधों का दोषी साबित होने पर छह महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। साथ ही कैदी की अंतरिम जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई।
क्या है आईपीसी की धारा 228-
(न्यायिक कार्यवाही में बैठे हुए लोक सेवक का साशय अपमान या उसके कार्य में विघ्न)
जो कोई किसी लोक सेवक का उस समय, जब कि ऐसा लोक सेवक न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में बैठा हुआ हो, साशय कोई अपमान करेगा या उसके कार्य में कोई विघ्न डालेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा ।
क्या है आईपीसी की धारा 179-
(प्रश्न करने के लिए प्राधिकृत लोक सेवक का उत्तर देने से इंकार करना)
जो कोई किसी लोक सेवक से किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए. ऐसे लोक सेवक की वैध शक्तियों के प्रयोग में उस लोक सेवक द्वारा उस विषय के बारे में उससे पूछे गए किसी प्रश्न का उत्तर देने से इंकार करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दंडित किया जाएगा |