सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने आज गुरुवार को वकील और उत्तर प्रदेश इकाई बीजेपी के प्रवक्ता प्रशांत कुमार उमराव को चेताया है. अदालत ने उन्हें तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी श्रमिकों पर हमलों के बारे में झूठी सूचना Fake News फैलाने के आरोप पर कहा है कि उन्हें अधिक जिम्मेदार होना चाहिए. अदालत ने उन्हें माफी मांगने के लिए कहा है.
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की बेंच वकील और उत्तर प्रदेश इकाई के बीजेपी प्रवक्ता उमराव पर दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. हालांकि,बीजेपी नेता को इस शर्त पर ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी है कि वह अपना मोबाइल नंबर हर समय चालू रखेंगे और तमिलनाडु पुलिस को अपनी लाइव गूगल पिन लोकेशन भेजेंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की शर्त को संशोधित किया. इसमें बीजेपी नेता प्रशांत कुमार उमराव को 15 दिनों तक रोजाना सुबह 10.30 बजे और शाम 5: 30 बजे पुलिस के सामने पेश होने कहा गया था.
‘अगली तारीख से पहले, आपको माफी मांगनी चाहिए’
वकील उमराव ने मामले में अग्रिम जमानत देते समय मद्रास हाई कोर्ट की लगाई गई एक शर्त को चुनौती भी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की लगाई गई शर्त को संशोधित किया. इसमें कहा गया था कि उमराव 15 दिनों की अवधि के लिए रोजाना 10.30 बजे और शाम 5.30 बजे पुलिस के सामने पेश होंगे और इसके बाद भी पूछताछ के लिए जरूरत पड़ने पर उन्हें पेश होना पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता 10 अप्रैल को जांच अधिकारी (Investigating Officer) के सामने पेश होंगे. बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा से पूछा, “वह (उमराव) बार में कब से हैं.” लूथरा ने जब कहा कि 7 साल से तो बेंच ने कहा, “उन्हें (याचिकाकर्ता को) अधिक जिम्मेदार होना चाहिए.” बेंच ने ये भी कहा, “अगली तारीख से पहले, आपको माफी मांगनी चाहिए.”
झूठी सूचना देने के मामले FIR दर्ज हैं –
सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश भी पारित किया. इसमें कहा गया है कि हाई कोर्ट की उन्हें दी गई अग्रिम जमानत ट्वीट के संबंध में तमिलनाडु में दर्ज किसी भी अन्य एफआईआर में लागू होगी.
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता ने दो याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें से एक हाई कोर्ट की अग्रिम जमानत देते समय लगाई गई शर्त के खिलाफ है और दूसरी याचिका में उनके ट्वीट को लेकर विभिन्न पुलिस थानों में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया गया है.
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि ऐसी कोई अन्य एफआईआर FIR नहीं है, जिसमें उमराव का नाम लिया गया हो.
इससे पूर्व दिल्ली हाई कोर्ट ने तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमलों के दावे संबंधी कथित झूठी सूचना देने के मामले में राज्य पुलिस की दर्ज एक एफआईआर में एक वकील को चेन्नई की अदालत का रुख करने के लिए 20 मार्च तक ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी थी.
बिहार के 15 लोगों को तमिलनाडु में फांसी-
ज्ञात हो की बाद में, उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए मद्रास हाई कोर्ट Madras High Court की मदुरै पीठ का दरवाजा खटखटाया था.
अपने 21 मार्च के आदेश में, मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष का कहना है, याचिकाकर्ता ने अपने ट्विटर पेज Tweeter Page पर झूठी सामग्री अपलोड की थी, जिसमें दावा किया गया था कि बिहार के 15 निवासियों को तमिलनाडु के एक कमरे में कथित तौर पर फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था क्योंकि वे हिंदी में बोल रहे थे और उनमें से 12 की मौत हो गई थी.
उमराव के वकील ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि कथित ट्वीट Tweet मूल रूप से निजी समाचार चैनलों में प्रदर्शित किया गया था और उन्होंने इसे केवल री-ट्वीट ReTweet किया था.