मद्रास हाईकोर्ट Madras High Court के मदुराई बेंच ने अपने समक्ष आये एक याचिका में अद्भुत्त निर्णय सुनाया कि, अगर सीता की स्वर्ण प्रतिमा उनकी शारीरिक उपस्थिति का विकल्प हो सकती है, तो आभासी उपस्थिति vertual mode के माध्यम से विवाह को पंजीकृत क्यों नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन की बेंच ने याचिका सुनवाई के दौरान स्वामी विवेकानंद के व्याख्यान को उद्धृत करते हुए कहा-
“एक समय ऐसा आया जब राम एक बहुत बड़ा बलिदान, या यज्ञ करने जा रहे थे, जैसे कि पुराने राजा जश्न मनाते थे। लेकिन भारत में कोई भी समारोह एक विवाहित व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के बिना नहीं किया जा सकता है; उनके साथ पत्नी होनी चाहिए, सहधर्मिणी, “सह-धर्मवादी” – यह एक पत्नी के लिए अभिव्यक्ति है। हिंदू गृहस्थ को सैकड़ों अनुष्ठान करने पड़ते हैं, लेकिन शास्त्रों के अनुसार किसी को भी विधिवत नहीं किया जा सकता है, अगर उसके पास पत्नी नहीं है जो उसके हिस्से के साथ पूरक है।
अब राम की पत्नी उसके साथ नहीं थी, क्योंकि उन्हें निर्वासित कर दिया गया था। इसलिए लोगों ने उन्हें फिर से शादी करने के लिए कहा। लेकिन इस अनुरोध पर राम अपने जीवन में पहली बार लोगों के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं हो सकता। मेरा जीवन सीता का है। इसलिए, उनके स्थान पर सीता की एक स्वर्ण प्रतिमा बनाई गई, ताकि समारोह संपन्न हो सके।
Now Rama’s wife was not with him then, as she had been banished. So, the people asked him to marry again. But at this request Rama for the first time in his life stood against the people. He said, “this cannot be. My life is Sita’s”. So, as a substitute, a golden statue of Sita was made, in order that the ceremony could be accomplished”.
प्रस्तुत मामले में, रिट याचिका दायर की गई थी, जिसमें प्रतिवादी को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से दूल्हे के साथ याचिकाकर्ता की शादी की पुष्टि करने और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत इसे पंजीकृत करने का निर्देश देने की प्रार्थना की गई थी
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि “अधिनियम की धारा 12 आभासी उपस्थिति को बाहर नहीं करती है। यहां एक ऐसा मामला है जहां पार्टियों ने व्यक्तिगत रूप से एक संयुक्त आवेदन प्रस्तुत किया और 30 दिनों की अनिवार्य अवधि की समाप्ति के बाद प्रतिवादी के सामने फिर से व्यक्तिगत रूप से पेश हुए। यदि प्रतिवादी ने सही कदम उठाया होता तो वर्तमान स्थिति बिल्कुल भी उत्पन्न नहीं होती।”
पीठ ने कहा कि शादी का अधिकार एक मौलिक मानवाधिकार है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 12 और 13 का अर्थ इस प्रकार लागू किया जाना चाहिए कि इस अधिकार को लागू किया जा सके। अधिनियम की धारा 12 (2) में कहा गया है कि विवाह किसी भी रूप में संपन्न किया जा सकता है जिसे पक्ष अपनाना चाहें, ऐसे में पार्टियों ने ऑनलाइन मोड को चुना है।
कोर्ट ने विवाह के पक्ष में यू.कलाथीस्वरन बनाम जिला रजिस्ट्रार, कराईकुडी और एक अन्य [डब्ल्यूपी (एमडी) संख्या 11345 2018 दिनांक 23.12.2020] में, माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. वैद्यनाथन ने माना था कि यह आवश्यक नहीं है कि दोनों पक्ष भारतीय नागरिक होना चाहिए।
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा –
अस्तु मेरा मानना है कि विवाह को संपन्न कराने में कोई कानूनी बाधा नहीं है। याचिकाकर्ता के पास राहुल एल.मधु का पावर ऑफ अटॉर्नी है। विवाह संपन्न होने के बाद, याचिकाकर्ता अपने लिए और राहुल एल.मधु की ओर से विवाह प्रमाणपत्र पुस्तिका में अपने हस्ताक्षर कर सकती है। इसके बाद, प्रतिवादी द्वारा अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।
तदनुसार उच्च न्यायालय ने अपील की अनुमति दी और कहा कि विवाह को संपन्न कराने में कोई कानूनी बाधा नहीं है।
केस टाइटल – वासमी सुदर्शनी बनाम सब रजिस्ट्रार
केस नम्बर – 2022 का डब्ल्यूपी (एमडी) नंबर 15511