गंभीर अपराध में लंबे समय तक जेल में रहने के कारण, जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता, गैंगरेप के आरोपी की याचिका खारिज-HC

बॉम्बे High Court ने 1993 के सांप्रदायिक दंगों के मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया

बॉम्बे हाई कोर्ट में आरोपी सोमनाथ गायकवाड़ की वकील सना रईस खान ने दलील दी थी कि अक्टूबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से वह जेल में बंद है और मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई है। वकील सना रईस खान ने बताया कि आरोपियों के खिलाफ भी आरोप तय नहीं किए गए हैं। हालांकि अदालत इन दलीलों से सहमत नहीं हुई और आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 15 साल की एक किशोरी के साथ गैंगरेप मामले के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला वर्ष 2020 का है। अदालत ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि गंभीर और जघन्य अपराधों के मामले में ट्रायल में देरी जमानत का आधार नहीं बन सकती।

न्यायमूर्ति माधव जमदार के बेंच ने कहा कि यह मामला गंभीर अपराध है, इसलिए लंबे समय तक जेल में रहने के आधार पर जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है। इस मामले में आदेश की प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई। आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए हालांकि, पीठ ने सत्र न्यायालय को निर्देश दिया कि वह इस मामले की सुनवाई नौ महीने में पूरी करे।

आरोपी सोमनाथ गायकवाड़ की वकील सना रईस खान ने अदालत में दलील दी थी कि अक्टूबर 2020 में गिरफ्तारी के बाद से वह जेल में बंद है और मुकदमे में कोई प्रगति नहीं हुई है। यहां तक कि आरोपियों के खिलाफ भी आरोप तय नहीं किए गए हैं। पुणे में हडपसर पुलिस ने 15 वर्षीय लड़की के सामूहिक बलात्कार के मामले में अक्टूबर 2020 में गायकवाड़ के खिलाफ पहली एफआईआर दर्ज की थी

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कोर्ट ने कहा की गंभीर मामलों में लंबी कैद – जमानत देने आधार नहीं-

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि गायकवाड़ सामूहिक बलात्कार के आरोप का सामना रहा है है, जो एक गंभीर मामला है इसके लिए आरोपी को आजीवन कारावास की न्यूनतम सजा हो सकती है। अदालत ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मामला है जहां आरोप है कि आरोपी (गायकवाड़) सामूहिक बलात्कार के अपराध में शामिल है। जब घटना हुई, तब पीड़िता की उम्र महज 15 साल थी। इसलिए लंबी कैद के आधार पर भी जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है।’

अदालत ने कहा, ‘गंभीर अपराधों से जुड़े मुकदमे में सिर्फ देरी ही किसी आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं हो सकती।’ पीठ ने आगे कहा कि कानून में ऐसा कोई स्ट्रेटजैकेट फार्मूला नहीं है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि विचाराधीन कैदी को लंबे समय तक जेल में रखा गया है।

अदालत को संदेह- आरोपी व्यक्ति मामले में गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा

इससे पहले अदालत ने उस समय भी हैरानी जताई थी जब पीड़िता और उसके पिता ने अदालत के समक्ष पेश होकर कहा था कि अगर आरोपी को जमानत दी जाती है तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। न्यायमूर्ति जामदार ने कहा कि जमानत याचिका खारिज करने का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पीड़िता और उसके पिता का आचरण है, जिससे संदेह होता है कि आरोपी व्यक्ति मामले में गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है। पीठ ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह नौ महीने के भीतर मुकदमे को तेजी से पूरा करे और हर तीन महीने में समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल करे।

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अदालत ने कहा, “यह निर्देश इसलिए जारी किया जाता है क्योंकि मामला सामूहिक बलात्कार का है और आरोपी पीड़िता और गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है और सबूतों से छेड़छाड़ भी कर रहा है।”

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