IPC 498A में बगैर जांच गिरफ्तारी की तो खैर नहीं, हाई कोर्ट का पुलिसवालों को सख्त निर्देश

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सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है और आईपीसी धारा 498 ए के तहत तुरंत गिरफ्तारी को रोकने के दिए आदेश-

दहेज प्रथा की IPC धारा 498 ए को लेकर काफी समय से विवाद है और यह सच कम परेशान करने के नियत से ज्यादा प्रयोग होती हैं। आईपीसी धारा 498 ए में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान हैं। इसे लेकर इस साल सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था कि तुरंत गिरफ्तारी न हो। अब त्रिपुरा हाई कोर्ट ने दहेज प्रथा की धाराओं में तुरंत गिरफ्तारी न करने की गाइडलाइंस जारी की हैं।

त्रिपुरा हाई कोर्ट ने आईपीसी धारा 498A में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। हाई कोर्ट ने इस साल जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए के तहत तुरंत गिरफ्तारी को रोकने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने इसके संबंध में पुलिस के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर निर्देशों का पालन नहीं हुआ तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी और संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगी।

हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, जांच अधिकारियों को किसी आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले सीआरपीसी की धारा 41 में उल्लिखित मापदंडों की एक चेकलिस्ट भरनी होती है। अनुपालन करने में विफलता अधिकारियों को विभागीय कार्रवाई और अदालत की अवमानना के लिए उत्तरदायी बना देगी।

‘बताने होंगे गिरफ्तारी के कारण’-

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हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट जो कारणों को दर्ज किए बिना हिरासत को अधिकृत करते हैं, वे भी उच्च न्यायालय की विभागीय कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होंगे। उच्च न्यायालय के निर्देशों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पुलिस अधिकारी धारा 498ए मामलों में अनावश्यक रूप से अभियुक्तों को गिरफ्तार न करें और मजिस्ट्रेट आकस्मिक और यांत्रिक रूप से निरोध को अधिकृत न करें।

कोर्ट ने कहा कि त्रिपुरा सरकार को पुलिस अधिकारियों को तदनुसार निर्देश देना होगा। निर्देश में उन्हें यह बताना होगा कि यह हाई कोर्ट की गाइडलाइंस हैं और सीआरपीसी में निर्धारित मापदंडों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के बारे में खुद को संतुष्ट करना चाहिए।

मजिस्ट्रेट की भी जबावदारी-

पुलिस अधिकारी अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के समक्ष आगे की हिरासत के लिए पेश करते समय उन कारणों और सामग्री/साक्ष्य के साथ भरी हुई चेकलिस्ट प्रस्तुत करेगा जिसके कारण धारा 498ए की गिरफ्तारी आवश्यक हो गई थी। मजिस्ट्रेट को अधिकारी की रिपोर्ट की जांच करने और उसकी संतुष्टि दर्ज करने के बाद ही आगे की हिरासत को अधिकृत करना चाहिए।

गिरफ्तारी से पहले मजिस्ट्रेट को बताना जरूरी-

जारी दिशा-निर्देशों में निर्दिष्ट किया गया है कि धारा 498ए के तहत किसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं करने का निर्णय मामले की स्थापना की तारीख से दो सप्ताह के भीतर मजिस्ट्रेट को लिखित रूप में दिया जाना चाहिए। जिला एसपी उस अवधि को बढ़ा सकते हैं लेकिन लिखित रूप में दर्ज कारणों के साथ। त्रिपुरा उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि पुलिस को मामला दर्ज करने की तारीख के दो सप्ताह के भीतर सीआरपीसी की धारा 41 के तहत आरोपी को पेश होने का नोटिस देना चाहिए।

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