केरल उच्च न्यायलय ने शुक्रवार को लुलु इंटरनेशनल शॉपिंग मॉल द्वारा अपने ग्राहकों से पार्किंग पैसा लेने का आरोप लगाने वाली दो याचिकाओं पर फैसला कि माल द्वारा प्रथम दृष्टया पार्किंग फीस लेना उचित नहीं है।
न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने इस सवाल पर कलामास्सेरी नगर पालिका से स्पष्ट जवाब मांगा और मामले को दो सप्ताह के बाद उठाए जाने के लिए पोस्ट किया। कोर्ट ने कहा, “भवन नियमों के अनुसार पार्किंग की जगह इमारत का एक हिस्सा है और एक इमारत परमिट इस शर्त पर जारी किया जाता है कि पार्किंग की जगह होगी। इस अंडरटेकिंग के आधार पर एक इमारत का निर्माण किया जाता है।
सवाल यह है कि निर्माण के बाद क्या मालिक पार्किंग फीस ले सकता है? प्रथम दृष्टया मेरी राय में मॉल कार पार्किंग फीस नहीं ले सकते हैं। अब मैं इस मुद्दे पर नगर पालिका का रुख जानना चाहता हूं।”
वादकर्ताओं की शिकायत थी कि लुलु मॉल बिना किसी अधिकार के पार्किंग फीस वसूल कर रहा है। प्रतिवादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस श्रीकुमार ने कहा कि केरल नगर पालिका अधिनियम की धारा 447 के तहत लाइसेंस दिया गया है।
प्रतिवादियों ने आगे कहा कि हाईकोर्ट के फैसले हैं जो उनकी स्थिति का समर्थन करते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद नगर पालिका को अपने निश्चित रुख पर एक बयान दाखिल करने का निर्देश दिया कि क्या भवन नियमों के तहत अनिवार्य पार्किंग स्थान के लिए पार्किंग फीस लिया जा सकता है।
यह भी देखा गया कि लुलु द्वारा पार्किंग फीस का आगे का संग्रहण इस रिट याचिका के परिणाम के अधीन है। हालांकि, यह स्पष्ट किया गया कि इस बीच, वे अपने जोखिम पर इस तरह की फीस जमा कर सकते हैं। मामले की सुनवाई 28 जनवरी 2022 को की जाएगी।
पहली याचिका एक सामाजिक कार्यकर्ता बॉस्को लुइस ने दायर की, जो व्यक्तिगत रूप से एक पक्षकार के रूप में पेश हुए। एक अन्य याचिका फिल्म निर्देशक पॉली वडक्कन द्वारा दायर की गई, जब उनसे 2 दिसंबर को मॉल जाने पर पार्किंग फीस के रूप में 20 रुपये लिया गया था।
वडक्कन ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि मॉल के कर्मचारियों ने बाहर निकलने का गेट बंद कर दिया और जब उसने शुरू में पार्किंग फीस का भुगतान करने से इनकार किया तो उसे धमकी दी। याचिका एडवोकेट जोमी के. जोस के माध्यम से दायर की गई है। यह तर्क दिया गया कि पार्किंग फीस जमा करना केरल नगर पालिका अधिनियम और केरल नगर पालिका भवन नियम 1994 का घोर उल्लंघन है क्योंकि नियमों के अनुसार, मॉल एक वाणिज्यिक परिसर है और पार्किंग के लिए अनुमोदित भवन योजना में निर्धारित स्थान को भुगतान और पार्क की सुविधा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यदि कोई रूपांतरण किया जाता है, तो यह क़ानून के साथ धोखाधड़ी है। पिछली सुनवाई के दौरान, वकील ने तर्क दिया कि मॉल के पास ग्राहकों से पार्किंग फीस लेने का लाइसेंस नहीं है। हालांकि प्रतिवादियों ने इसका विरोध किया। याचिका में आगे तर्क दिया गया कि 2010 से मॉल पार्किंग फीस ले रहा है और इसे सरकार द्वारा वसूल किया जाना था।
तदनुसार, याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि मॉल द्वारा याचिकाकर्ता से पार्किंग फीस से रूप में 20 की वसूली अवैध था, इसे लौटाया जाना चाहिए। संबंधित अन्य हाईकोर्ट के फैसले गुजरात हाईकोर्ट ने 2019 में फैसला सुनाया था कि मॉल और मल्टीप्लेक्स को पार्किंग फीस नहीं लेनी चाहिए क्योंकि वे कार पार्किंग की जगह प्रदान करने के लिए एक वैधानिक दायित्व के तहत हैं। पिछले साल, कर्नाटक हाईकोर्ट ने मॉल और मल्टीप्लेक्स में मुफ्त कार पार्किंग की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
केस टाइटल – पॉली वडक्कन बनाम लुलु इंटरनेशनल शॉपिंग मॉल प्राइवेट लिमिटेड