हाईकोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी कहा: आर्य समाज संस्था शादी की दुकानें बन गई हैं, ये समाज तंत्र को दूषित कर रही हैं-

ग्वालियर खंडपीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आर्य समाज की संस्थाओं में होने वाली शादियों पर एक बार फिर सवाल उठाया है। हाई कोर्ट की युगल पीठ ने आर्य समाज मंदिरों में होने वाली शादियों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि ये जाति, धर्म व उम्र को नहीं देख रहे हैं और विवाह करा रहे हैं। यह संस्थाएं शादी की दुकानें बन गई हैं। इनके माध्यम से किए जाने वाले विवाह समाज के तंत्र को दूषित कर रहे हैं, जिसका समाज पर विपरित प्रभाव पड़ रहा है।

विशेष विवाह अधिनियम के तहत किसी को भी विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए अथारिटी निर्धारित है, जिस पर प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार है। एकल पीठ ने आदेश पारित करने में कोई गलती नहीं की है। हाईकोर्ट ने मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था की रिट अपील को खारिज कर, एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा है।

पवनसुत कालोनी हुरावली स्थिति मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था ने एकल पीठ के 9 दिसंबर 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए युगल पीठ ने रिट अपील दायर की थी।

अपील की सुनवाई न्यायमूर्ति रोहित आर्या व न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की बैंच ने की। अपील में तर्क दिया गया कि उनकी संस्था विवाह कराने का कार्य करती है और प्रमाण पत्र जारी करती है। अग्नि के फेरे कराकर विवाह कराया जाता है, लेकिन एकल पीठ ने उनके खिलाफ गलत आदेश पारित किया है। पहले भी आदेश हुए हैं, लेकिन उन आदेशों को निरस्त किया जा चुका है। एकल पीठ के आदेश को भी निरस्त किया जाए।

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एडिशनल अधिवक्ता जनरल का तर्क-

एडिशनल अधिवक्ता जनरल एमपीएस रघुवंशी ने तर्क देते हुए कहा की विशेष विवाद अधिनियम के तहत विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के प्रविधान किए गए हैं। किसी भी आर्य समाज संस्था को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने के अधिकार नहीं है। यदि किसी को प्रमाण पत्र लेना है तो निर्धारित अथारिटी के पास जाना चाहिए। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने बहस के दौरान कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में विवाह की प्रक्रिया निर्धारित है। माता-पिता सगाई करते हैं, विवाह की तारीखें निर्धारित होती हैं, मंत्रोच्चारण के दौरान सात फेरे दिलाए जाते हैं। इसमें नाते-रिश्तेदार आते हैं, रिसेप्शन आदि होता है।

एकल पीठ ने यह दिए थे आदेश-

  • प्रदीप राणा ने हुरावली स्थिति मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था में प्रेम विवाह किया था। इसके बाद हाई कोर्ट में यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि उन्हें उनके स्वजन से जान का खतरा है, इसलिए उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए। कोर्ट ने याचिका को सुनने के बाद विवाह को अवैध घोषित कर दिया था।
  • कोर्ट ने मूलशंकर आर्य समाज वैदिक संस्था में विवाह को प्रतिबंधित कर दिया था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि इस संस्था में होने वाले विवाहों की जांच की जाए। यह जांच पुलिस अधीक्षक को करनी थी।
  • आर्य समाज मंदिरों में होने वाले विवाह के लिए गाइड लाइन बनाई जाए। इस गाइड लाइन में विवाह करने वाले माता-पिता को सूचना देने का नियम शामिल किया जाए। विवाह करने वालों की सूचना प्रकाशित की जाए।
  • आर्य समाज मंदिरों को एक महीने में अपने नियमों में बदलाव करना होगा।
  • कोर्ट के प्रतिबंध के बाद भी इस संस्था ने विवाह करा दिया था, जिसके बाद कोर्ट ने एक अन्य याचिका में संस्था के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं।
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वर्ष 2016 में अदालत ने बनाई थी गाइडलाइन-

उच्च न्यायलय ने वर्ष 2016 में आर्य समाज मंदिरों में होने वाले विवाह को लेकर गाइडलाइन बनाई थी। कोर्ट ने पाया था कि इन मंदिरों में होने वाले विवाह की वजह से काफी समस्या होती है, इससे पुलिस परेशान होती है। विवाह करने के बाद युवक-युवती सुरक्षा की मांग करने लगते हैं, इसलिए कोर्ट ने संस्था को युवक-युवती के माता-पिता को सूचना देना अनिवार्य किया था, लेकिन युगल पीठ ने इस आदेश में बदलाव कर दिया था।

पहले भी आदेश हुए हैं, लेकिन उन आदेशों को निरस्त किया जा चुका है। एकल पीठ के आदेश को भी निरस्त किया जाए।सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में एडिशनल अधिवक्ता जनरल एमपीएस रघुवंशी ने कहा कि किसी भी आर्य समाज संस्था को विवाह प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार नहीं है।

न्यायमूर्ति रोहित आर्या व न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की बैंच ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट में विवाह की प्रक्रिया अपनायी जाए।

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