अगर गाली गलौज एकांत में हुआ हो तो एस सी एस टी एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही नहीं बनती है – हाई कोर्ट

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कर्नाटक उच्च न्यायलय Karnataka High Court ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत एक आरोपी के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता के साथ उसने कथित दुर्व्यवहार एक अपार्टमेंट के बेसमेंट तल में किया गया था, जो सार्वजनिक रूप से दिखने वाला या सार्वजनिक स्थान नहीं था।

न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने रितेश पेस नाम के व्यक्ति की याचिका को स्वीकार करते हुए अपने निर्णय में कहा कि “अगर शिकायत, आरोप पत्र के सार, और गवाहों के बयान, विशेष रूप से सीडब्ल्यू -2 को एक साथ पढ़ा जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से प्रकट होगा जो भी गाली गलौज हुआ वो बेसमेंट में दी गई है, जहां सीडब्ल्यू -1 से 6 काम कर रहे थे और अंदर तहखाने में, यह नहीं पाया गया कि कोई अन्य व्यक्ति भी मौजूद था।”

अदालत ने साथ ही साथ यह भी कहा कि “उपरोक्त बयानों को पढ़ने से दो बात प्रमुखता से उभरकर सामने आते हैं – एक, इमारत का तहखाना सार्वजनिक रूप से दिखने वाला स्थान नहीं था और दो, केवल वे शिकायतकर्ता/सीडब्ल्यू 1, उनके मित्र और श्री जयकुमार आर के अन्य कर्मचारी उपस्थित होने का दावा कर रहे हैं। इसलिए, गाली देना स्पष्ट रूप से सार्वजनिक रूप से दिखने वाला या सार्वजनिक स्थान नहीं है, ताकि अधिनियम के उपरोक्त प्रावधानों को मामले में आकर्षित किया जा सके।”

क्या है पूरा मामला-

शिकायतकर्ता (मोहन) ने ये आरोप लगाया कि वो नवनिर्मित भवन में काम कर रहा था तो आरोपी/याचिकाकर्ता वहां गया और शिकायतकर्ता को काम बंद करने को कहा। जब बाद वाले ने काम रोकने से इनकार कर दिया तो आरोप लगाया गया कि आरोपी/याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को उसकी जाति का नाम लेते हुए संबोधित किया, उसे जान से मारने की धमकी दी और निर्माण कार्य में बाधा डाली। कहा गया कि घटना गवाहों सीडब्ल्यू-2 से सीडब्ल्यू-6 के सामने घटित हुई।

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तत्पश्चात दूसरे प्रतिवादी/शिकायतकर्ता द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ एक शिकायत मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसने अपनी जाति का नाम लेकर गाली गलोच कि गई जो अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और 3(1)(एस) के तहत दंडनीय अपराध होगा। पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट दाखिल कर दी है।

अदालत द्वारा वाद अवलोकन-

पीठ ने कहा कि वर्तमान आपराधिक मामला याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता के नियोक्ता जयकुमार आर नायर के खिलाफ निषेधाज्ञा प्राप्त करने के बाद शुरू किया गया था।

इसके बाद इसने एससी/एसटी एक्ट SC/ST Act की धारा 3 (1) (आर) और 3 (1) (एस) का उल्लेख किया और कहा, “एक ऐसे अपराध को, जो इन धाराओं के तहत दंडनीय होगा, साबित करने के लिए आवश्यक यह है कि गाली देना सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक रूप से दिखने वाले स्थान पर होना चाहिए।”

इसमें कहा गया है, “शिकायतकर्ता सीडब्ल्यू-1 है। इस पर विवाद नहीं है कि शिकायतकर्ता सहित सभी गवाह श्री जयकुमर आर. नायर के सह-कर्मचारी हैं या सीडब्ल्यू-1/शिकायतकर्ता के मित्र हैं।”

कोर्ट ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य CRIMINAL APPEAL NO. 707 OF 2020 05-11-2020 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, कहा कि अपराध का पंजीकरण ही प्रामाणिकता की कमी से ग्रस्त है।

सुप्रीम कोर्ट ने हितेश वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य CRIMINAL APPEAL NO. 707 OF 2020 05-11-2020 के मामले में कहा कि “चूंकि पीड़ित, अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित है, और उसके घर की चार दीवारों के भीतर यह दुर्व्यवहार किया गया था, तो यह केस “सार्वजनिक रूप से” घटने वाले दुर्व्यवहार के मामले को संतुष्ट नहीं करता है।” नतीजतन, अदालत ने चार्जशीट के उस हिस्से को रद्द कर दिया।

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भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 504, 506 और 323 के तहत अन्य अपराधों के संबंध में, पीठ ने कहा, “भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के तहत दंडनीय अपराध के लिए झगड़ के कारण चोटिल होना चाहिए। रिकॉर्ड को देखने से पता चलता है कि हाथ पर साधारण खरोंच का निशान और छाती पर एक और खरोंच का निशान है। रक्तस्राव वह नहीं है, जो दिखाया गया है। इसलिए, साधारण खरोंच के निशान आईपीसी IPC की धारा 323 के तहत अपराध नहीं बन सकते।”

तदनुसार कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया और मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया।

केस टाइटल – रितेश पेस बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर – CRIMINAL PETITION No.3597 OF 2022
कोरम – न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना

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