सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस सुझाव को खारिज कर दिया कि उसकी याचिका पर किसी अन्य पीठ द्वारा सुनवाई की जानी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि दिए गए प्रत्येक आदेश में कुछ न कुछ ‘तर्क’ (Logic) होता है और महज अपनी पसंद का निर्णय नहीं होने का मतलब यह नहीं निकला जाना चाहिए कि वह आदेश ‘अतार्किक’ (Illogical) है।
पीठ ने कहा ‘शायद याचिकाकर्ता गलत अवधारणा के शिकार’-
उच्चतम अदालत ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब एक याचिकाकर्ता (Petitioner) ने न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति ए. एस. ओका की पीठ (Bench) से अनुरोध किया कि उसकी याचिका की सुनवाई (Hearing) किसी अन्य पीठ द्वारा की जाए, क्योंकि उसकी पुरानी याचिका पर ‘तार्किक आदेश’ पारित नहीं किया गया था। पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि शायद वह (याचिकाकर्ता) ‘गलत अवधारणा’ के शिकार हैं।
पीठ ने टिप्पणी की-
पीठ ने टिप्पणी की, ‘महज इसलिए कि आदेश आपकी पसंद का नहीं था, इसका यह मतलब नहीं होता कि यह ‘अतार्किक’ (Illogical) है. हर आदेश कुछ तर्क के आधार पर दिया जाता है।’ सर्वोच्च अदालत ने याचिकाकर्ता का आग्रह अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई उचित कारण सामने नहीं लाया गया है कि उनके अनुरोध पर क्यों विचार किया जाए।
याचिकाकर्ता ने क्या दलील दी?
न्यायालय अपने पूर्व के आदेशों पर प्रतिवादियों (Defendants) द्वारा अमल नहीं किए जाने को लेकर उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt) कार्रवाई करने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता ने दलील दी, ‘मैं अपनी इच्छा के अनुरूप आदेश नहीं चाहता हूं। लेकिन मेरी इच्छा है कि तार्किक आदेश हो.’ याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने पहले भी याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर आदेश पारित किए गए. लेकिन उन आदेशों (Orders) में तार्किक कारण नहीं दिए गए थे।
याचिका की खारिज-
न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति ए. एस. ओका की पीठ ने अपने एक आदेश का उल्लेख करते हुए कहा, ‘आप जो कह रहे हैं वह गलत है, फैसला 20 पन्नों में है और आप कहते हैं कि यह बगैर तर्कशक्ति का है।’ न्यायालय ने कहा कि उसे इस याचिका को सुनने का कोई कारण नजर नहीं आता। इसके साथ ही इसने याचिका खारिज (Petition Dismissed) कर दी।