अगर कर्मचारी की प्रमोशन किसी गलत बयानी पर आधारित नहीं थी तो पेंशन से कोई रिकवरी नहीं की जा सकती: HC

HIGH COURT OF JAMMU KASHMIR AND LADAKHAT SRINAGAR

जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट Jammu & Kashmir & Laddakh High Court की एक खंडपीठ द्वारा दिये अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से उसकी पदोन्नति की मांग के तथ्य के संबंध में किसी भी गलत बयानी के अभाव में, उसके सेवानिवृत्ति लाभ से कोई वसूली नहीं की जा सकती है या उस मामले के लिए उसकी पदोन्नति को वापस नहीं लिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान और न्यायमूर्ति वसीम सादिक नरगल की बेंच ने कहा-

“कल्पना की किसी भी सीमा तक इस विलंबित चरण में परिणामी लाभ वापस नहीं लिया जा सकता है, जब वह सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन प्राप्त कर रही है।”

क्या है मामला-

याचिकाकर्ता प्रतिवादी-बीएसएनएल की ओर से उन्हें जारी एक नोटिस को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्हें कारण बताने के लिए कहा गया था कि उन्हें जूनियर लेखा अधिकारी के पद पर 16.12.2013 को दी गई पदोन्नति को वापस क्यों नहीं लिया जा सकता है।

याची ने कई अन्य आधारों पर दलील दी कि उसने 2019 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना का विकल्प चुना था और उसकी पेंशन पेंशन भुगतान आदेश के संदर्भ में लेखा अधिकारी के रूप में अंतिम वेतन के आधार पर तय की गई थी और इसलिए कारण बताओ नोटिस कानून की नजर में कल्पना की किसी भी हद तक कायम नहीं रह सकता है।

रिकॉर्ड तथ्यों अवलोकन उपरान्त, पीठ ने पाया कि यद्यपि 05.02.2018 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जो कि 16.12.2013 को दिए गए कनिष्ठ लेखा अधिकारी के रूप में उनकी पदोन्नति को वापस लेने के लिए था, फिर बाद में, कैसे और किन परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता को उत्तरदाताओं द्वारा 29.06.2018 को लेखा अधिकारी के ग्रेड में पदोन्नत किया गया, इस संबंध में स्पष्टीकरण नहीं दिया गया और न ही प्रतिवादी अपने रुख को सही ठहरा सके।

ALSO READ -  हाई कोर्ट: आरोपी का वकील अदालत के सामने पेश नहीं होता है तो, निचली अदालत आरोपी के लिए एक वकील नियुक्त करने के लिए बाध्य है-

कोर्ट ने पाया कि-

“हम यह समझने में विफल हैं कि, एक बार कनिष्ठ लेखा अधिकारी के रूप में उनकी पदोन्नति के संबंध में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, फिर बाद में उन्हें कैसे और किन परिस्थितियों में लेखा अधिकारी के ग्रेड में पदोन्नत किया गया, वह भी सक्षम प्राधिकारी के अनुमोदन के बाद।”

अपने निर्णय में पीठ ने आगे कहा कि यदि कर्मचारी की किसी भी गलत बयानी या धोखाधड़ी के कारण अधिक राशि का भुगतान नहीं किया गया था, बल्कि यह गलत सिद्धांत या नियम/आदेश की व्याख्या को लागू करने के कारण था, जो बाद में गलत पाया गया, तो इस प्रकार परिलब्धियों या भत्तों का अधिक भुगतान सेवानिवृत्ति के बाद वसूली योग्य नहीं है।

पीठ ने साहिब राम बनाम हरियाणा राज्य और अन्य, 1995 Supp (1) SCC 18 में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को दर्ज करना भी सार्थक पाया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी वसूली पर रोक लगा दी थी।

न्यायिक पीठ ने कहा कि पेंशनभोगी सेवारत कर्मचारियों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं और ऐसे पेंशनभोगी एक निर्देश मांग सकते हैं कि गलत भुगतान की वसूली नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि पेंशनभोगी सेवारत कर्मचारियों की तुलना में अधिक नुकसानदेह स्थिति में हैं। अधिक गलत भुगतान की वसूली के किसी भी प्रयास से उन्हें अनुचित कठिनाई होगी।

कोर्ट ने पूरी विवेचना करते हुए कहा कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, उसके लिए वर्तमान रिट याचिका की अनुमति है और आक्षेपित कारण बताओ नोटिस सं. 862-129/जनरल कोर/कोर्ट मामलों/2016/34 दिनांक 05.02.2018 को अपास्त/निरस्त किया जाता है।

ALSO READ -  हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अधिवक्ता की सदस्यता निलंबित, 10 मार्च तक स्पष्टीकरण का अवसर

केस टाइटल – सोनम डोलमा बनाम भारत संचार निगम लिमिटेड और अन्य

केस नम्बर – SWP No. 449/2018 IA No. 01/2018

Translate »