‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में केवल स्थगन नहीं चल सकता’: सुप्रीम कोर्ट ने 27 बार स्थगित हुए मामले में आरोपी को दी ज़मानत
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में उस आरोपी को ज़मानत दे दी जिसकी ज़मानत याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में 27 बार स्थगित की गई थी, परंतु कभी विचार नहीं किया गया। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में हाईकोर्ट को याचिका पर लंबी अवधि तक निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने कहा:
“व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों में उच्च न्यायालयों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे याचिकाओं को केवल बार-बार स्थगित करते रहें और कोई ठोस कार्यवाही न करें।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, जो एक आपराधिक मामले में आरोपी है, ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए यह शिकायत की थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में उसकी ज़मानत याचिका लंबे समय से लंबित है और अदालत ने अब तक 27 बार केवल स्थगन किया है, जबकि याचिका पर कोई निर्णय नहीं हुआ।
सामान्यत: सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन इस मामले में असामान्य देरी और न्यायिक निष्क्रियता को देखते हुए कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई की और नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
- याचिकाकर्ता चार वर्षों से अधिक समय से जेल में बंद है।
- इस बीच, प्राथमिक गवाहों की गवाही पूरी हो चुकी है।
- अदालत ने कहा कि ऐसी परिस्थितियाँ यह संकेत देती हैं कि आरोपी को निरंतर कारावास में रखना अन्यायपूर्ण होगा।
न्यायालय ने कहा:
“इन विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, याचिकाकर्ता को ज़मानत देना न्याय के हित में होगा।”
न्यायिक निष्कर्ष
- अदालत ने माना कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा न्यायालयों की मूलभूत जिम्मेदारी है।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट का केवल स्थगन करते रहना न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग और निष्क्रियता का प्रतीक है।
- सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को अन्य शर्तों के अधीन ज़मानत प्रदान की।
विशेष अनुमति हेतु याचिका (सी.आर.एल.) संख्या 5480/2025
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