Supreme Court शीर्ष अदालत ने सोमवार को हिंदू अल्पसंख्यक मामले में केंद्र सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करने पर नाराजगी जताई है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार Central Government को इस मुद्दे पर एक स्टैंड लेना होगा।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को हिंदू अल्पसंख्यक मामले में केंद्र सरकार Central Government की ओर से जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करने पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को 7,500 रुपये का जुर्माना लगाते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा-2(एफ) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करने का एक और अवसर प्रदान किया। अदालत ने कहा कि सरकार को इस मुद्दे पर एक स्टैंड लेना होगा। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने सात जनवरी को केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया था।
10 राज्यों में है हिंदू अल्पसंख्यक–
याचिका में वैकल्पिक रूप से, केंद्र सरकार को राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक की पहचान के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और फिर भी वे अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई योजनाओं का लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक माना जाता है। सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ को सूचित किया गया कि केंद्र ने मामले में स्थगन का अनुरोध करते हुए एक पत्र भेजा है। इस पर याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने आपत्ति जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा ऐसा बहाना मत बनाओ, जिसे स्वीकारना मुश्किल हो–
याची के अधिवक्ता ने कहा कि उन्हें केंद्र द्वारा केवल सुनवाई टालने और मामले को लटकाए रखने के उद्देश्य से भेजे पत्र पर आपत्ति है, क्योंकि मामले में सरकार का रुख महत्वपूर्ण होगा और उन्हें कम से कम इसमें तेजी लानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा, आप केवल पत्र ही प्रसारित कर रहे हैं। बाकी सब कुछ हो रहा है। आपको एक स्टैंड लेना होगा। एएसजी ने कोविड-19 स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार जल्द एक स्टैंड लेगी। इस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा बहाना मत बनाओ, जिसे स्वीकार करना हमें बहुत मुश्किल लगता है।
28 अगस्त, 2020 को जारी किया गया था नोटिस-
पीठ ने कहा कि 28 अगस्त, 2020 को इस याचिका पर नोटिस जारी किया गया था। यह उचित नहीं है कि इस मामले में केंद्र द्वारा अभी तक जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है। पीठ ने आगे कहा कि हम याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील के अनुरोध के अनुसार सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में 7,500 रुपये की लागत जमा करने के अधीन जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का एक और अवसर प्रदान करते हैं। इसके बाद पीठ ने मामले को 28 मार्च को सुनवाई के लिए निर्धारित करते हुए कहा कि प्रत्युत्तर, यदि कोई हो तो दो सप्ताह के भीतर दायर किया जाए।
जाने क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में कथित रूप से बेलगाम शक्ति देने और स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक बताते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है। अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि वास्तविक अल्पसंख्यकों को लाभ से वंचित करना और उनके लिए योजनाओं के तहत मनमाने और अनुचित संवितरण करना संविधान के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि यह धारा अनुच्छेद-14 सहित भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करती है। कई राज्यों में बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यकों की योजनाओं के लाभ ले रही है जबकि वास्तविक अल्पसंख्यक लाचार हैं।