जमानत देते समय अदालत के लिए विस्तृत कारण बताना जरूरी नहीं-

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पीठ ने कहा हमें अधिवक्ताओं की भी रक्षा करनी है-

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जमानत देते समय कोर्ट के लिए विस्तृत कारण बताना जरूरी नहीं है, खासकर तब जब मामला प्रारंभिक चरण में हो और आरोपित द्वारा किए गए अपराध को स्पष्ट नहीं किया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी हत्या के एक मामले में आरोपित को जमानत देने के पटना हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए की।

न्यायमूर्ति एल नारेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जमानत देते वक्त उसके कारणों को इस विस्तार से नहीं दिया जा सकता है जिससे ऐसा लगे कि उस मामले में आरोपित को सजा मिलेगी या वह बरी हो जाएगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपित के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति, आरोप साबित होने पर दोष सिद्धि और सजा की गंभीरता, गवाहों के प्रभावित होने की उचित आशंका, सुबूतों से छेड़छाड़, अरोपित का पूर्व आपराधिक इतिहास, अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को लेकर अदालत के प्रथम दृष्टया संतोष के बीच संतुलन बनाना होगा।

शीर्ष न्यायलय ने कहा, आपकी भाषा क्या है और आप पत्रकार बनते हो

सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील के खिलाफ अपने साप्ताहिक कन्नड़ समाचार पत्र में मानहानिकारक लेख लिखने के लिए दोषी ठहराए जाने और एक महीने जेल की सजा को चुनौती देने संबंधी एक पत्रकार की याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इन्कार कर दिया।

CJI प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने डीएस विश्वनाथ शेट्टी द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख किया और कहा कि वह और अधिक सजा के हकदार हैं।

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सजा के खिलाफ अपील खारिज करते हुए पीठ ने कहा, देखिए आपने किस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है और आप खुद को पत्रकार होने का दावा करते हैं! यह पूरी तरह से पीत पत्रकारिता है। हमें अधिवक्ताओं की भी रक्षा करनी है।

पीठ ने कहा, उन्होंने (उच्च न्यायलय और निचली अदालत) केवल एक महीने की सजा देकर काफी उदारता दिखाई है। आप इससे ज्यादा के हकदार हैं।

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