कर्नाटक हाईकोर्ट ने एएबी में जाति-आधारित आरक्षण की याचिका खारिज की, सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह
कर्नाटक हाईकोर्ट ने शनिवार को बंगलूरू अधिवक्ता संघ (AAB) की गवर्निंग काउंसिल में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति आर. देवदास की एकल पीठ ने अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग अधिवक्ता फाउंडेशन, कर्नाटक एससी/एसटी, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक अधिवक्ता संघ द्वारा दायर याचिकाओं को अस्वीकार करते हुए याचिकाकर्ताओं को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की सलाह दी।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
याचिकाकर्ताओं ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया था, जिसमें एएबी की गवर्निंग काउंसिल में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य किया गया था। इस आधार पर उन्होंने जाति-आधारित आरक्षण की भी मांग की थी।
हाईकोर्ट का तर्क: अनुच्छेद 226 के तहत सीमित अधिकार
हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पारित किया गया था, जो न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि एएबी के मौजूदा उपनियमों में जाति-आधारित आरक्षण का प्रावधान नहीं है, और वह अनुच्छेद 226 के तहत इस प्रकार का निर्देश जारी करने के लिए अधिकृत नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को माना वैध
हालांकि, न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि एएबी की गवर्निंग काउंसिल में कभी भी एससी/एसटी या ओबीसी समुदाय से कोई पदाधिकारी नहीं रहा है।
अदालत ने यह भी ध्यान दिया कि एएबी ने पहले ही महिलाओं के लिए आरक्षण लागू कर दिया है, जिससे यह तर्क भी सामने आता है कि अन्य वंचित वर्गों के लिए भी इसी तरह के कदम उठाए जाने चाहिए।
एएबी को राज्य से मिलता है धन, लेकिन आरक्षण अनिवार्य नहीं
न्यायालय ने माना कि एएबी एक बार एसोसिएशन है, जो अधिवक्ताओं का एक निकाय है और राज्य सरकार से धन प्राप्त करता है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जब एएबी ने लैंगिक आरक्षण लागू किया, तो इसने अन्य संवैधानिक आरक्षणों को लागू करने का मार्ग खोल दिया।
सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह
हाईकोर्ट ने एएबी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के निर्णय पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं को लगता है कि वे भी समान लाभ के हकदार हैं, तो उन्हें इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख करना चाहिए।
Leave a Reply