Hijab Controversy Verdict : कर्नाटक उच्च न्यायलय का बड़ा फैसला, हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं-

Hijab Controversy Verdict

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा- हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं; स्कूल यूनिफॉर्म पहननी ही होगी-

Hijab Controversy Verdict – कर्नाटक उच्च न्यायलय ने कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध के मामले में अपना निर्णय आज सुनाया।

उच्च न्यायलय ने अपने दिए गए निर्णय में ये स्पष्ट रूप से कहा कि हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है और इस प्रकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है।

जानकारी हो की हाई कोर्ट ने इन चार आधारों पर कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ मुस्लिम लड़कियों की याचिका खारिज की-

  1. क्या हिजाब पहनना इस्लामिक आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा है है जो अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।
  2. क्या स्कूल यूनिफॉर्म का निर्देश अधिकारों का उल्लंघन है।
  3. क्या 5 फरवरी का शासनादेश अक्षम और स्पष्ट रूप से मनमाना होने के अलावा अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है?
  4. क्या महाविद्यालय प्राधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक जांच करने का कोई मामला बनता है।

फैसले का आधार बनीं ये दो बातें-

मंगलवार को फैसला सुनाने से पहले हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने कहा कि इस मामले में दो सवालों पर गौर करना अहम है।

पहला- क्या हिजाब पहनना आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक आजादी के अधिकार में आता है।

दूसरा- क्या स्कूल यूनिफॉर्म पहनने को कहना इस आजादी का हनन है। इसके बाद हाईकोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर बैन को सही ठहराया।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी, जिन्होंने खुली अदालत में निर्णय के ऑपरेटिव भाग को पढ़ा-

“हमारे सवालों के जवाब हैं, मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है।”
आगे कहा,

ALSO READ -  तालिबान सरकार के गठन के बाद वह खुद को आतंकी संगठनों से अलग कर लेंगे : विदेश मंत्री चीन

“हमारा दूसरा जवाब है स्कूल यूनिफॉर्म अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। यह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य है जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं।”

कोर्ट ने कहा-

“उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, सरकार के पास 5 फरवरी का शासनादेश जारी करने का अधिकार है और इसके अमान्य होने का कोई मामला नहीं बनता है। प्रतिवादियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और यथा वारंटो का रिट बनाए रखने योग्य नहीं है। योग्यता से रहित होने के कारण सभी रिट याचिकाएं खारिज की जाती हैं।”

हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने आगे कहा कि राज्य द्वारा स्कूल ड्रेस का निर्धारण अनुच्छेद 25 के तहत छात्रों के अधिकारों पर एक उचित प्रतिबंध है और इस प्रकार, कर्नाटक सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।
तदनुसार, कोर्ट ने मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिसमें हिजाब (हेडस्कार्फ़) पहनने के लिए एक सरकारी पीयू कॉलेजों के प्रवेश से इनकार करने की कार्रवाई को चुनौती दी गई है।

जाने क्या है पूरा मामला-

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पूर्ण पीठ के समक्ष सुनवाई 11 दिनों तक चली और फैसला 25 फरवरी को सुरक्षित रखा गया था।

वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, संजय हेगड़े, प्रोफेसर रविवर्मा कुमार, यूसुफ मुछला और एएम डार याचिकाकर्ताओं के लिए तर्क दिया।
कर्नाटक राज्य की ओर से महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी पेश हुए।

हिजाब प्रतिबंध के समर्थन में शिक्षकों और कॉलेज विकास समितियों के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता एसएस नागानंद और साजन पूवैया पेश हुए।
इस मामले में न्यायालय के समक्ष एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या हिजाब पहनना इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और क्या ऐसे मामलों में राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

ALSO READ -  प्रधानमंत्री मोदी 24 सितंबर को वाशिंगटन में व्यक्तिगत उपस्थिति वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में लेंगे हिस्सा-

अदालत को इस पर भी विचार करना है कि क्या हिजाब पहनना संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार के चरित्र का हिस्सा है और क्या केवल अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है?

इस बीच, कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें छात्रों को उनकी आस्था की परवाह किए बिना कक्षाओं में किसी भी प्रकार के धार्मिक कपड़े पहनने से रोक दिया गया था।

गवर्नमेंट पीयू कॉलेज की कुछ मुस्लिम छात्राओं को हेडस्कार्फ़ पहनने के कारण प्रवेश से वंचित करने के बाद विवाद खड़ा हो गया।
उन्होंने तर्क दिया कि हिजाब पहनना उनके धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथा का हिस्सा है।

याचिकाकर्ताओं ने 5 फरवरी के एक सरकारी आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं होगा और आदेश दिया कि छात्रों को संबंधित कॉलेज विकास समितियों द्वारा निर्धारित ड्रेस कोड पहनना चाहिए।
इस मामले को पहले न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित की एकल पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिसने याचिकाओं को यह कहते हुए बड़ी पीठ के पास भेज दिया था कि “मौलिक महत्व के प्रश्न” शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं का यह मामला था कि हिजाब पहनना इस्लाम के तहत एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा है और स्कूल के दौरान कुछ घंटों के लिए भी इसका निलंबन, समुदाय के विश्वास को कमजोर करता है और संविधान के अनुच्छेद 19 और 25 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। वे क्वाज़ुलु-नटाल एंड अन्य बनाम पिल्ले में दक्षिण अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालय के एक फैसले पर बहुत अधिक निर्भर थे, जिसने दक्षिण भारत की एक हिंदू लड़की के स्कूल में नाक की अंगूठी पहनने के अधिकार को बरकरार रखा।

ALSO READ -  'मृत लोगों को जारी किया सरकारी फंड': कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकारी योजना में फंड के कथित दुरुपयोग की जांच तीन महीने में करने का दिया आदेश-
Translate »