#law विधि व्यवस्था के अंतर्गत “वकीलों” की भूमिका सहायक की होती है-

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जब आपके अधिकारों का उल्लंघन होता है तो आपको वकील (अधिवक्ता) Lawyer की जरूरत होती है-

राजेश कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, वाराणसी

संविधान के अनुसार न्याय प्राप्त करना हम सभी का मूलभूत अधिकार है और किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था को न्याय प्राप्त करने हेतु वकील (अधिवक्ता) Lawyer की आवश्यकता होती है। वकील न्यायलय और वहां की न्यायिक प्रक्रिया विधि निर्देशिका और कानूनों का जानकर होता है। सही शब्दों में अगर कहे तो वकील अपने मुवक्किल और न्याय प्राप्ति का माध्यम होता है।


विधि व्यवस्था में न्याय प्राप्त करना हम सभी का मूलभूत अधिकार है और ऐसा ‘करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य 1994 SCC (3) 569’ में भी अभिनिर्णित किया गया, जहाँ यह कहा गया कि ‘स्पीडी ट्रायल’ का अधिकार, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसी अधिकार को अदालत में प्राप्त करने के लिए जब मुवक्किल एक वकील से संपर्क करता है, तो एक वकील की भूमिका अहम् हो जाती है।

जब आपके अधिकारों का उल्लंघन होता है तो आपको वकील की जरूरत होती है।

अगला सवाल यह आता है कि कानूनी अधिकार क्या हैं?

कानूनी या विधिक अधिकारों से मतलब विधि द्वारा प्राप्त अधिकारों से हैं और उन्हें विधिक उपायों से लागू किया जा सकता है। आप अपने अधिकारों को लागू करने के लिए अपनी मर्जी से कोई भी कदम नहीं उठा सकते हैं। अपने अधिकारों को लागू करवाने के लिए आपको कानूनी उपायों का उपयोग करना पड़ेगा। यहाँ पर वकील की जरूरत पड़ती है।

अगर आप वकील के द्वारा मांगी गयी फीस को चुकाने में असमर्थ हैं तो आप संबधित अदालत में अर्जी दे सकते हैं। अदालत आपको वकील उपलब्ध कराएगा। दूसरे शब्दों में वकील आपकी ओर से विधि की अदालत में आपका केस लड़ता है।

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विधि व्यवस्था अधिकारों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है, इसलिए वह नागरिकों के कर्तव्यों को परिभाषित करती है। केस की प्रकृति के अनुसार आपको विधि प्रक्रिया का उपयोग करना होता है। जैसे – दीवानी मामलों के लिए नागरिक विधि (civil law) और फौजदारी मामलों के लिए आपराधिक विधि (criminal law)।

नागरिक विधि व्यक्ति या समूहों के अधिकार और कर्तव्यों से संबंधित है।
नागरिक अपराध आपराधिक दोषों से दोषी की मानसिकता के कारण अलग होते हैं और इनके अपने नागरिक दायित्व हैं। नागरिक दोष और आपराधिक दोष करने वालों वाले व्यक्तियों की मानसिकता में फर्क होता है और इस कारण उनके लिए दंड की प्रकृति भी भिन्न होती है।

आपराधिक विधि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आपराधिक दायित्वों को सुनिश्चित करती है जिसमें मामले के हिसाब से वित्तीय दंड के साथ कई बार शारीरिक दंड भी दिया जाता है।

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लेखक अधिवक्ता है और कानूनी मामलों के जानकार है,यह लेखक के अपने कथन है।

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