विधि आयोग ने राजद्रोह को बरकरार रखने और आईपीसी की धारा 124A के अन्तरगर्त सजा में बढ़ोतरी की अनुशंसा की

में बढ़ोतरी की अनुशंसा IPC US 124A e1685765171811

जहाँ मौजूदा समय में धारा 124ए में आजीवन कारावास या 3 वर्ष तक कारावास का ही प्रावधान है परन्तु आयोग का सुझाव है कि 3 साल की जेल की अवधि को बढ़ाकर 7 साल किया जाना चाहिए।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी (कर्नाटक हाई कोर्ट) के अध्यक्षता वाले भारत के 22वें विधि आयोग ने सिफारिश की है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A, जो राजद्रोह को अपराध बनाती है, को कुछ बदलावों के साथ क़ानून की किताब में बनाए रखा जाना चाहिए।

भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने 11 मई, 2022 को इसकी वैधता पर निर्णय लेने के बजाय प्रावधान को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

भारत के विधि आयोग (Law Commission of India) ने कहा कि उसका मानना है कि राजद्रोह से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (Section 124A of Indian Penal Code) को बरकरार रखने की आवश्यकता है, लेकिन इसके इस्तेमाल के संबंध में अधिक स्पष्टता लाने के लिए कुछ संशोधन भी किए जाने चाहिए।

विधि आयोग के अध्यक्ष का केंद्रीय कानून मंत्री को पत्र-

22वें विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे पत्र में कहा, “इस संदर्भ में वैकल्पिक रूप से यह भी सुझाव दिया जाता है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 196 (3) के अनुरूप एक प्रावधान शामिल किया जा सकता है जो भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत किसी अपराध के संबंध में प्राथमिकी दर्ज किए जाने से पहले अपेक्षित प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करेगा।”

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केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि धारा 124ए के दुरुपयोग संबंधी विचार पर गौर करते हुए वह यह सिफारिश करता है कि केंद्र द्वारा दुरुपयोगों पर लगाम लगाते हुए आदर्श दिशानिर्देश जारी किया जाए।

जाने क्या है भारतीय दंड संहिता की धारा 124A?-

भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में राजद्रोह (Sedition) के बारे में बताते हुए कहा गया है कि यदि कोई ऐसे शब्द लिखता या बोलता है, या कुछ ऐसा करता है जिससे किसी के मन में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति नफरत या अवमानना का भाव उत्पन्न हो, तो उसे या तो आजीवन कारावास भेज दिया जाएगा जिसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है; या फिर शख्स को तीन साल तक की जेल हो सकती है जिसमें जुर्माना शामिल हो सकता है; या फिर उसे सिर्फ भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है।

विधि आयोग ने की ‘राजद्रोह’ को बरकरार रखने की बात-

आयोग ने यह भी कहा कि “औपनिवेशिक विरासत” होने के आधार पर राजद्रोह को निरस्त करना उचित नहीं है। आयोग ने कहा, “महज इस आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124A को निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा किया है, यह अनिवार्य रूप से भारत की मौजूदा जमीनी हकीकत के प्रति आंख मूंदना है।”

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A को बरकरार रखना चाहिए। हालांकि कुछ संशोधन लाए जाने चाहिए जिनसे इस धारा का इस्तेमाल पूर्ण स्पष्टता के साथ किया जा सके।

इस धारा में आयोग ने ‘प्रवृत्ति’ (Tendency) शब्द को जोड़ने की अनुशंसा की है- कोई भी ऐसे शब्द कहता या लिखता है, कुछ ऐसा करता है जिसमें सरकार के प्रति नफरत या अवमानना के भाव की ‘प्रवृत्ति’ नजर आए, तो उसे सजा मिलेगी।

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‘IPC की धारा 124A के तहत मिलने वाली सजा में होना चाहिए संशोधन’-

ज्ञात हो कि भारत के विधि आयोग ने यह अनुशंसा भी की है भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत दी जाने वाली सजा में भी संशोधन होना चाहिए। आयोग की यह अनुशंसा है कि इस धारा के तहत मिलने वाली तीन साल की सजा को बढ़ाकर सात साल कर देना चाहिए।

भारत के विधि आयोग ने दिया एक और सुझाव-

‘प्रवृत्ति’ शब्द और सजा में बदलाव की अनुशंसा के साथ विधि आयोग ने एक और सुझाव दिया है। उनका यह कहना है कि आईपीसी की धारा 124A के तहत तब तक कोई एफआईआर (First Information Report) नहीं लिखवाई जाएगी जब तक एक इन्स्पेक्टर या फिर उससे ऊपर की रैंक वाला पुलिस अफसर एक प्रारम्भिक जांच न कर ले। उस जांच की रिपोर्ट के आधार पर ही राज्य या केंद्र सरकार एफआईआर लिखवाने की अनुमति देगी।

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