हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच ने एक विधि (LAW STUDENT) छात्र की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी, जो एक अधिवक्ता के साथ प्रशिक्षु (intern) कर रहा था।
छात्र पर स्वयं को वकील के रूप में कोर्ट में पेश करने पर धारा 419, 420 एवं 171 आईपीसी के तहत अपराधों के लिए मुक़दमा दर्ज किया गया था।
न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति सरोज यादव की एक पीठ ने गिरफ्तारी पर रोक लगते हुए कहा-
प्रथम दृष्टया, यह हमारे लिए प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ऐसे मामले में स्थगन की मांग करने का अत्यधिक प्रयास किया जहां एक पक्ष का प्रतिनिधित्व विद्वान अधिवक्ता द्वारा किया गया हो, जिसके तहत याचिकाकर्ता इंटर्न था।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता एक कानून का छात्र है और एक वकील के साथ इंटर्नशिप कर रहा है जो जिला न्यायालय, रायबरेली में प्रैक्टिस कर रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि जिज्ञासा के कारण और अपने प्रशिक्षण के एक भाग के रूप में, याचिकाकर्ता अदालती कार्यवाही में भाग ले रहा है। याचिकाकर्ता के वकील ने पीठासीन अधिकारी, मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक 4.10.2021 की ओर भी अदालत का ध्यान आकर्षित किया है जिसमें यह दर्ज किया गया है कि पूछने पर याचिकाकर्ता ने पीठासीन अधिकारी को बताया कि वह कानून का छात्र है और एक वकील नहीं।
कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि याचिकाकर्ता ने खुद को एक वकील के रूप में प्रतिरूपित किया है। पीठासीन अधिकारी द्वारा पारित आदेश दिनांक 4.10.2021 से, ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ट्रिब्यूनल में सिविल वस्त्रों में उपस्थित था।
परिणामस्वरूप न्यायालय ने मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिया कि सूचीबद्ध होने की अगली तिथि तक याचिकाकर्ता -अभय कुमार गुप्ता को आक्षेपित प्राथमिकी के तहत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। हालांकि, याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करेगा।