मद्रास हाई कोर्ट ने Rape Victims के Two Finger Test पर तत्काल रोक का दिया आदेश, कहा ये निजिता और गरिमा के अधिकार का है उलंघन-

मद्रास हाई कोर्ट ने Rape Victims के Two Finger Test पर तत्काल रोक का दिया आदेश, कहा ये निजिता और गरिमा के अधिकार का है उलंघन-

Two Finger Test on Rape Victim – रेप पीड़ितों Rape Victim पर होने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर मद्रास हाईकोर्ट Madras High Court ने तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को इस पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है।

निजिता और गरिमा के अधिकार का है उलंघन-

जस्टिस आर. सुब्रमण्यम और जस्टिस एन सतीश कुमार की पीठ ने बलात्कार पीड़ितों पर होने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को तत्काल प्रभाव से रोक लगाने के आदेश दिए हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि डॉक्टरों द्वारा रोप पीड़ितों पर किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट की इस प्रथा पर तत्काल रूप से प्रतिबंध लगाया जाए।

जस्टिस आर. सुब्रमण्यम और जस्टि एन. सतीश कुमार की पीठ ने यह निर्देश जारी किया है क्योंकि पीठ ने यह नोट किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी टू-फिंगर टेस्ट का उपयोग यौन अपराधों से जुड़े मामलों में किया जा रहा है, विशेष रूप से नाबालिग पीड़ितों के मामले में,जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह टेस्ट बलात्कार के पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।

पीठ ने कहा कि लिलु उर्फ राजेश व एक अन्य बनाम हरियाणा राज्य एआईआर 2013 एससी 1784:ः (2013) 14 एससीसी 643 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि टू-फिंगर टेस्ट और इसकी व्याख्या बलात्कार पीड़ितों के निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करती है। इसलिए भले ही रिपोर्ट सकारात्मक हो, वास्तव में सहमति के अनुमान को जन्म नहीं दिया जा सकता है।

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पीठ ने यह भी नोट किया कि गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात राज्य बनाम रमेशचंद्र रामभाई पांचाल, 2020 एससीसी ऑनलाइन गुजरात 114 के मामले में दिए गए फैसले में यह माना था कि टू-फिंगर टेस्ट, यौन उत्पीड़न के संदर्भ में इस्तेमाल किए जाने वाला सबसे अवैज्ञानिक तरीका है और इसकी कोई फोरेंसिक वैल्यू नहीं है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इस परीक्षण का उपयोग यौन अपराध के मामलों में अभी भी किया जा रहा है। विशेष रूप से नाबालिगों के खिलाफ। मद्रास हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह टेस्ट बलात्कार के पीड़िताओं की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।

क्या था मामला-

दरअसल खंडपीठ एक नाबालिग के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस व्यक्ति ने अपनी उम्रकैद की सजा को रद्द करने की मांग की थी। मामला 16 साल की लड़की के साथ कथित यौन उत्पीड़न से संबंधित था। लड़की का टू-फिंगर टेस्ट कराने के बाद महिला कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाया और उसे पॉक्सो एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई।

खंडपीठ का निर्णय-

पीठ ने कहा कि उपरोक्त न्यायिक घोषणाओं के मद्देनजर, हमें कोई संदेह नहीं है कि टू-फिंगर टेस्ट को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए, हम राज्य सरकार को निर्देश जारी करते हैं कि चिकित्सा पेशेवरों द्वारा यौन अपराधों की पीड़िताओं पर किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट की प्रथा पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।

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केस टाइटल – राजीवगांधी बनाम राज्य का प्रतिनिधित्व पुलिस निरीक्षक द्वारा
केस नंबर – क्रिमिनल अपील (MD) No.354 of 2021

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