हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: 23 साल से अलग रह कर भी पत्नी का तलाक के लिए राजी न होना पति के प्रति क्रूरता, डाइवोर्स ग्रांटेड-

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पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायलय Punjab & Hariyana High Court ने पति- पत्‍नी के बीच तलाक को लेकर बड़ा फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि पति व पत्‍नी लंबे समय से अलग रह रहे हों और एक पक्ष तलाक चाहता है, तो समझ लेना चाहिए कि विवाह टूट चुका है और उनके एक साथ रहने की संभावना नहीं है।

अदालत ने टिप्पणी की, ” अव्यवहार्य विवाह के कानून में संरक्षण के परिणाम जो लंबे समय से प्रभावी नहीं रहे हैं, पक्षकारों के लिए अधिक दुख का कारण हैं।”

न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैमेली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति द्वारा दायर एक अपील की अनुमति दी। फैमेली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत विवाह विघटन के लिए दायर पति की याचिका खारिज कर दी थी।

पत्‍नी से परेशान पति को हाई कोर्ट ने 18 साल बाद दी राहत-

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट Punjab & Hariyana High Court ने यह टिप्पणी एक वैवाहिक विवाद में पति द्वारा दायर तलाक की मांग को स्वीकार करते हुए की। मामले के अनुसार, पति व पत्‍नी लगभग 23 साल से अलग रह रहे हैंऔर उनके रिश्ते को जोड़ने की सभी कोशिश नाकाम हो चुकी थी। लेकिन, पत्‍नी किसी हालत में पति से तलाक नहीं लेना चाहती थी। इसी के साथ न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को भी रद कर दिया जिसमें पति की तलाक की अपील को खारिज कर दिया था।

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पति का आरोप, पत्नी बच्चों व उस पर करती थी शारीरिक हमला व नहीं बनाती थी खाना-

इस मामले में दंपति का विवाह नवंबर 1990 में नारनौल में हुआ था। याची पति के अनुसार प्रतिवादी-पत्नी असाध्य मानसिक बीमारी से पीड़ित थी वह हिंसक हो जाती थी और बच्चों को बेरहमी से पीटती थी और यहां तक कि वह अपने पति पर भी हमला कर देती थी। पति के अनुसार उसकी पत्नी खाना भी नहीं बनाती थी और उसे कई बार को बिना खाए सोना पड़ता था।

पति के अनुसार उसने पत्नी का मेडिकल इलाज कराने के लिए उसने भरसक प्रयास किए, जिनका कोई परिणाम नहीं निकला। पत्नी ने बिना वजह पति को छोड़ दिया तो पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट में पत्नी ने इन्‍कार किया कि वह मानसिक बीमारी से पीड़ित है और कभी भी बच्चों या पति पर शारीरिक हमला किया या कभी उन्हें भोजन से वंचित नहीं किया।

पत्‍नी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने तलाक लेने के लिए उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए और उसने ही उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया। पत्नी की दलीलों को सुन कर निचली अदालत ने पति की तलाक की मांग को 2004 में खारिज कर दिया था । इसके बाद पति ने हाई कोर्ट का रुख किया।

हाई कोर्ट ने कहा 23 साल से अलग रह कर भी पत्नी का तलाक के लिए राजी न होना पति के प्रति क्रूरता

हाई कोर्ट ने भी दोनों पक्षों को कोर्ट से बाहर मामला सुलझाने के दो मौके दिए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए देखा कि दोनों पक्षों के बीच विवाह लंबे समय से टूट गया है और उनके एक साथ आने या फिर से एक साथ रहने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही।

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय नवीन कोहली बनाम नीतू कोहली, 2006 (4) के मामले में विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने के मामले case of irretrievable break down of marriage पर विचार कर रहा था। इस मामले में पत्नी लंबे समय से अलग रह रही थी लेकिन अपने पति के जीवन को दुखी करने के लिए आपसी सहमति से तलाक नहीं चाहती थी। इस प्रकार, तलाक की डिक्री को मंजूरी दे दी गई और इसे एक क्रूर उपचार माना गया और यह दिखाया गया कि विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया था।

कोर्ट ने कहा कि दोनो 23 से अधिक वर्षों से अलग-अलग रह रहे है और उनके साथ रहने की कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन फिर भी पत्नी पति को आपसी तलाक देने के लिए तैयार नहीं है, तो यह कृत्य क्रूरता से कम नहीं ।

कोर्ट का निर्देश पत्नी के नाम स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 10 लाख रुपये की एफडी करे-

Decree of divorce is granted in favour of the appellant-husband. Decree-sheet be prepared accordingly. However, we direct the appellant-husband to make an F.D. of `10 lakhs as permanent alimony in the name of the respondent-wife.

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि अगर यह तलाक नहीं दिया गया तो दोनों पक्षों के लिए विनाशकारी होगा। कोर्ट ने पति की तलाक की मांग को स्वीकार करते हुए पत्नी के नाम पर स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 10 लाख रुपये की एफडी करने का निर्देश भी दिया।

केस टाइटल – सोम दत्त बनाम बबीता रानी
केस नंबर – FAO-M-118-M of 2004 Date of Decision: 25.05.2022
कोरम – न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति अशोक कुमार वर्मा

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