ईडी ने कहा है कि केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से जाएगा गलत संदेश
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत देने की मांग का विरोध किया।
शीर्ष अदालत में हलफनामा दाखिल करते हुए, ईडी ने कहा है कि ‘चुनाव प्रचार का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही संवैधानिक, यहां तक की यह कानूनी अधिकार भी नहीं है। ईडी ने कहा है कि केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से गलत संदेश जाएगा।
जानकारी हो की सुप्रीम कोर्ट कल शुक्रवार 10 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मौजूदा लोकसभा चुनावों में प्रचार करने की अनुमति देने के लिए अंतरिम जमानत पर फैसला करने वाला है। हालांकि, इससे एक दिन पहले ही प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने AAP प्रमुख की अंतरिम जमानत याचिका का विरोध करते हुए शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर कर दिया है। केंद्रीय एजेंसी कहा है कि कानून सभी के लिए समान हैं। ED ने कहा कि चुनाव में प्रचार करने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही संवैधानिक।
ED ने कहा है कि अगर ऐसा हुआ तो किसानों को अपनी फसलों के लिए और कंपनी डायरेक्टर को मीटिंग के लिए जमानत दी जा सकती है। एजेंसी ने कहा है कि पिछले पांच सालों में करीब 123 चुनाव हुए है। अगर इस तरह से चुनावों के लिए अंतरिम जमानत दी जाती रही तो किसी नेता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, क्योंकि चुनाव लगातार चलते रहने वाली प्रकिया है।
ऐसे जमानत का गलत संदेश होगा-
प्रवर्तन निदेशालय के हलफनामे में कहा गया है कि अगर नेताओं को चुनावों के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है तो इसका गलत संदेश जाएगा जो एक तरह से देश में समाज को दो भागों में बंटा माना जाएगा। शीर्ष अदालत में दाखिल एक नए हलफनामे में ED ने कहा कि किसी भी नेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई है, भले ही वह चुनाव नहीं लड़ रहा हो।
ED ने कहा, “इस बात को ध्यान में रखना प्रासंगिक है कि चुनाव के लिए प्रचार करने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है, न ही संवैधानिक, यहां तक कि यह कानूनी अधिकार भी नहीं है।” एजेंसी ने कहा कि उसकी जानकारी के अनुसार, “किसी भी नेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई है, भले वह चुनाव नहीं लड़ रहा हो। यहां तक कि चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार भी यदि हिरासत में हो तो उसे अपने खुद के प्रचार के लिए भी अंतरिम जमानत नहीं दी जाती है।”
जेल में बंद होने का मतदान का अधिकार भी नहीं मिलता-
ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत का विरोध करते हुए कहा है कि जेल में बंद कैदियों को वोट डालने का भी अधिकार नहीं मिलता है। ईडी ने कहा है कि जेल में रहने के दौरान वोट देने के अधिकार, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने वैधानिक और संवैधानिक अधिकार का दर्जा दिया था, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62(5) के आधार पर कानून द्वारा कम कर दिया गया है। ईडी ने अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत सरकार के मामले में 1997 में पारित फैसले का हवाला देते हुए यह जानकारी दी है। इतना ही नहीं, प्रवर्तन निदेशालय ने हलफनामे में कहा है कि ‘यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले 5 वर्षों में लगभग 123 चुनाव हुए हैं, ऐसे में यदि किसी को चुनाव में प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है तो फिर जांच एजेंसी द्वारा किसी भी राजनेता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही न्यायिक हिरासत में रखा जा सकता है क्योंकि देश में पूरे साल कोई न कोई चुनाव होता रहता है।
गिरफ्तारी के खिलाफ केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस संजीव खन्ना ने बुधवार को कहा था, “हम प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में आबकारी नीति से जुड़े धन शोधन के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत देने की मांग का विरोध किया।
शीर्ष अदालत में हलफनामा दाखिल करते हुए, ईडी ने कहा है कि ‘चुनाव प्रचार का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही संवैधानिक, यहां तक की यह कानूनी अधिकार भी नहीं है। ईडी ने कहा है कि केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने से गलत संदेश जाएगा। (अंतरिम जमानत पर) सुनाएंगे। गिरफ्तारी को चुनौती देने से जुड़े मुख्य मामले पर उस दिन सुनवाई भी होगी।”
पीठ में जस्टिस दीपांकर दत्ता भी शामिल थे। पीठ ने केजरीवाल की अंतरिम जमानत याचिका पर 7 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को केजरीवाल की न्यायिक हिरासत 20 मई तक बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अप्रैल को केजरीवाल की गिरफ्तारी को वैध ठहराया था। साथ ही कहा था कि बार-बार समन जारी करने और केजरीवाल के जांच में शामिल होने से इनकार करने के बाद ED के पास बहुत ही मामूली विकल्प बचा था।
ज्ञात हो की आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत के तहत तिहाड़ जेल में बंद हैं। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार से संबंधित है। यह नीति अब समाप्त कर दी गई है।