हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए सरकार की ओर से जवाबी हलफनामे दाखिल करने में लापरवाही बरतने को गंभीरता से लिया

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अपर महाधिवक्ता ने बहस की। हड़बड़ी में आधा अधूरा जवाबी हलफनामा तैयार कर दाखिल कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि अक्सर ऐसा देखा जा रहा जब बहस के समय सरकारी वकील दस्तावेज दाखिल करने के लिए समय मांगते हैं जबकि जवाबी हलफनामा तैयार करते समय ही सारे कथनों का जवाब दस्तावेज के साथ दाखिल करना चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाओं आदि में सरकार की ओर से जवाबी हलफनामे दाखिल करने में लापरवाही बरतने को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार के पास योग्य अधिवक्ताओं की कमी नहीं है जो न्याय देने में न्यायालय का सहयोग करते हैं। इसके बाद भी अक्सर देखा जा रहा अधिकतर जवाबी हलफनामे तैयार करने में लापरवाही बरती जा रही है।

अदालत ने जोर देकर कहा की ज्यायदतर सरकारी जवाबी हलफनामों में जमानत अर्जियों के कथनों का दस्तावेज सहित माकूल जवाब नहीं दिया जाता और बहस के दौरान सरकारी वकील सुसंगत दस्तावेज पेश करने के लिए समय की मांग करते हैं। यह चलन कोर्ट के समय की बर्बादी के साथ न्याय प्रशासन में अड़चन भी है।

न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने शुआट्स नैनी के डायरेक्टर विनोद बिहारी लाल की जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान उत्पन्न स्थिति को देखते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि राज्य के हितों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बड़े अधिकारियों की है। वे ऐसा तंत्र विकसित करें जिससे जवाबी हलफनामे उद्देश्य की पूर्ति करने वाले तैयार किए जाएं।

कोर्ट ने कहा कि अपर महाधिवक्ता ने विस्तृत बहस की लेकिन जवाबी हलफनामे में उनकी बहस का समर्थन करने वाले दस्तावेज ही नहीं थे। इस पर उन्होंने बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए समय मांगा। इस कारण सुनवाई स्थगित की गई।

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मामले के तथ्यों के अनुसार गत 20 जून को शिकायतकर्ता स्कूटी से प्रयागराज के पुराने नैनी पुल पर जा रहा था। पीछे से दो बाइक पर सवार चार लोगों ने देशी तमंचा दिखाकर लाल बंधुओं के खिलाफ फतेहपुर का केस वापस न लेने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। धमकी देने वालों ने बाइक की टक्कर से स्कूटी भी गिरा दी, जिससे शिकायतकर्ता घायल होकर बेहोश हो गया।

उसे जानने वालों ने नैनी के अस्पताल में भर्ती कराया। वहां पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। याची का कहना था कि घटना के तीन माह बाद दर्ज शिकायतकर्ता के बयान पर उसे झूठा फंसाया गया है। घटना को लेकर कुछ अन्य के बयान भी दर्ज किए गए हैं।

कोर्ट ने कहा सरकार की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में डॉक्टर के बयान सहित अन्य दस्तावेज नहीं हैं जबकि उन्हें लेकर अपर महाधिवक्ता ने बहस की। हड़बड़ी में आधा अधूरा जवाबी हलफनामा तैयार कर दाखिल कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि अक्सर ऐसा देखा जा रहा जब बहस के समय सरकारी वकील दस्तावेज दाखिल करने के लिए समय मांगते हैं जबकि जवाबी हलफनामा तैयार करते समय ही सारे कथनों का जवाब दस्तावेज के साथ दाखिल करना चाहिए।

कोर्ट ने इस मामले में बेहतर हलफनामा मांगा साथ ही साथ ये भी कहा कि सही जवाबी हलफनामा तैयार करने का तंत्र तैयार किया जाए।

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