JJ ACT SEC 12 के तहत जुवेनाइल को जमानत देते समय जमानती और गैर-जमानती अपराध में कोई अंतर नहीं: हाईकोर्ट

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (Juvenile Justice Act), 2015 की धारा 12 के आलोक में उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने कहा कि कोई भी व्यक्ति, जो स्पष्ट रूप से एक बच्चा है, जमानतदार पेश करने की शर्त या बिना शर्त के जमानत पर रिहा होने का हकदार है या इसको एक परिवीक्षा अधिकारी की देखरेख में या किसी योग्य व्यक्ति की देखरेख में रखा जाएगा।

न्यायमूर्ति आर.सी. खुल्बे ने कहा कि एक किशोर के संबंध में जमानती या गैर-जमानती अपराध के बीच का अंतर समाप्त कर दिया गया है।

कोर्ट ने आगे कहा

“दूसरे शब्दों में, प्रत्येक किशोर उन परिस्थितियों को छोड़कर जमानत पर रिहा होने का हकदार है, जहां उसकी रिहाई उसे किसी ज्ञात अपराधी के साथ जोड़ देगी या उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डाल देगी या उसकी रिहाई न्याय के लक्ष्य को हराने के लिए होगी।

JJ Act की धारा 2 (12) के अनुसार, ‘बच्चे (Child)’ का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने अठारह वर्ष की आयु पूरी नहीं की है।” किशोर न्याय बोर्ड के आदेश और Special Pocso Court विशेष न्यायाधीश पॉक्सो के फैसले के खिलाफ एक आपराधिक रिवीजन दायर की गई थी, जिसने अपराधों की गंभीरता को देखते हुए किशोर आरोपी की जमानत खारिज कर दी थी।

17 वर्षीय किशोर आरोपी पर Indian Penal Code भारतीय दंड संहिता की धारा 304, 338, 177 और 201 के तहत मामला दर्ज किया गया था। प्राथमिकी के अनुसार, नाबालिग आरोपी आपत्तिजनक वाहन चला रहा था।

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उक्त मुद्दे पर, अदालत ने कहा कि यह सबूत का मामला है कि क्या मामला IPC आईपीसी की धारा 304 ए आईपीसी की धारा 304 की परिभाषा के अंतर्गत आता है।

अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, Bail जमानत से इनकार किया जा सकता है यदि यह मानने के लिए उचित आधार है कि रिहाई से उस व्यक्ति को किसी ‘ज्ञात अपराधी’ के साथ जोड़ा जा सकता है।

कोर्ट इस बात पर जोर दिया कि संसद ने बिना उद्देश्य के ‘ज्ञात’ शब्द का उपयोग नहीं किया है। ‘ज्ञात’ शब्द का प्रयोग करके, संसद के लिए यह आवश्यक है कि न्यायालय उस अपराधी का पूरा विवरण जान ले जिसके साथ अपराधी को रहना है।

पीठ ने कहा-

मामले में, उसी के संबंध में रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है। दोनों आक्षेपित आदेश इसके बारे में चुप हैं। अपराधी की जमानत को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अपराध प्रकृति में जघन्य है, जबकि धारा 12 अधिनियम इसके बारे में कुछ नहीं कह रहा है।

अदालत ने इस प्रकार आपराधिक रिवीजन की अनुमति दी। इसके साथ ही आदेश को रद्द करते हुए किशोर को जमानत पर रिहा कर दिया।

केस टाइटल – Ayaan Ali Vs The State of Uttarakhand
केस नंबर – Criminal Revision No.226 of 2021
कोरम – Justice R.C. Khulbe

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