संसदीय स्थायी समिति ने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट में न्यायिक नियुक्तियों में भारतीय समाज के सभी वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की सिफारिश

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संसदीय स्थायी समिति की प्रमुख बातें-

  • सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के जजों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने की संभावना
  • उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता
  • सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में छुट्टियां
  • सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की अनिवार्य घोषणा
  • सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करना

कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण की कमी को ध्यान में रखकर भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि इससे लोगों में न्यायपालिका के प्रति भरोसा, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता में बढ़ोतरी होगी।

आरक्षण की कमी को ध्यान में रखते हुए कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने नागरिकों के बीच न्यायपालिका के विश्वास, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता को मजबूत करने के लिए उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट स्तर पर न्यायिक नियुक्तियों में समाज के विभिन्न वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए सिफारिश की है।

राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी बीजेपी नेता की अध्यक्षता में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों में “न्यायिक प्रक्रियाएं और उनके सुधार” विषय पर अपनी 133वीं रिपोर्ट पेश की।

रिपोर्ट के पैरा 12 में यह मुद्दा उठाया गया है कि हमारी उच्च न्यायपालिका विविधता की कमी से ग्रस्त है। साथ ही समिति ने उल्लेख किया कि अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व उच्च न्यायपालिका में वांछित स्तर से काफी नीचे है और यह देश की सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित नहीं करता है। समिति ने कहा, हाल के वर्षों में भारतीय समाज के सभी वंचित वर्गों के प्रतिनिधित्व में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है।

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न्यायपालिका के विश्वास, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता को को मिलेगी मजबूती-

संसदीय स्थायी समिति ने रिपोर्ट के पैरा 13 में कहा, हालांकि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट स्तर पर न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन समिति का मानना है कि भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नागरिकों के बीच न्यायपालिका के विश्वास, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता को और मजबूत करेगा।

रिपोर्ट के पैरा 16 में, समिति ने यह भी उल्लेख किया है कि उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सिफारिशें करते समय सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के कॉलेजियम दोनों को अल्पसंख्यकों सहित समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों से पर्याप्त संख्या में महिलाओं और उम्मीदवारों की सिफारिश करनी चाहिए। इस प्रावधान का प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जिसे वर्तमान में अंतिम रूप दिया जा रहा है।

इसके अलावा संसदीय स्थायी समिति ने कहा कि अब तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सामाजिक स्थिति से संबंधित डाटा 2018 से उपलब्ध है। समिति ने रिपोर्ट के पैरा 17 में न्याय विभाग से सिफारिश की है कि वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में सेवारत सभी न्यायाधीशों के संबंध में इस तरह के डाटा को इकट्ठा करने के तरीके और साधन खोजें। समिति ने रिपोर्ट में कहा, ऐसा करने के लिए यदि आवश्यक हो, तो संबंधित अधिनियमों और न्यायाधीशों के सेवा नियमों में आवश्यक संशोधन किए जा सकते हैं।

यह रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों जैसी देश की उच्च न्यायपालिका से संबंधित है जिसमें समिति ने मुद्दों की जांच की और छह सुधारों का सुझाव दिया जिसमें उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता, सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों की व्यवहार्यता, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के जजों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने की संभावना, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में छुट्टियां, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की अनिवार्य घोषणा और सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करना शामिल है।

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