पटना उच्च न्यायलय Patna High Court ने दुष्कर्म के ही एक मामले में सुनवाई के दौरान एक विशेष टिप्पणी Special Comment की है, जिसके ऐसे मामलों में दूरगामी परिणाम होंगे।
हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर दुष्कर्म पीड़िता Rape Victim वारदात के दौरान प्रतिरोध नहीं करती है तो इसका अर्थ यह नहीं लेना चाहिए कि उसने अपनी सहमति प्रदान कर दी थी।
पटना हाईकोर्ट का लैंडमार्क निर्णय-
मामला साल 2015 का है। इसमें पीड़िता को एक कमरे में घसीट कर उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। इस मामले में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दोषी इस्लाम मियां उर्फ़ मो. इस्लाम पटना हाईकोर्ट पहुंचा, जहां न्यायमूर्ति एएम बदर की एकल पीठ ने उसकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय दंड विधान IPC की धारा 375 के प्रावधान के अनुसार दुष्कर्म के दौरान शारीरिक रूप से विरोध नहीं करने को यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं माना जा सकता है। अपीलकर्ता के तर्क दिया था कि चूंकि पीड़िता को कोई शारीरिक चोट नहीं थी और उसने शारीरिक प्रतिरोध नहीं किया था, इसलिए यह उसकी सहमति से बनाया गया संबंध था।
मामला का संक्षिप्त विवरण –
जानकारी हो कि पीड़िता दुष्कर्म के दोषी अपीलकर्ता के जमुई स्थित ईंट-भट्ठे में काम करने वाली मजदूर थी। उसके अनुसार उसने 9 अप्रैल 2015 को मालिक से मजदूरी मांग की थी। अपीलार्थी ने उसे बाद में मजदूरी देने से बात कही। उस रात, जब पीड़िता घर में खाना बना रही थी, तब अपीलकर्ता जबरन उसके घर में घुस कर उसे घसीटा और एक कमरे में ले जाकर दुष्कर्म किया। हालांकि, उसके शोर-मचाने के कारण गांव वालों ने अपराधी को पकड़कर पेड़ से बांध दिया। इसके बाद उसके खिलाफ एफआइआर FIR दर्ज की गई।
सत्र अदालत SESSION COURT ने अपीलकर्ता को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
इसके खिलाफ वह पटना हाईकोर्ट में आया।
कोर्ट ने आयोजित किया “अभियोक्ता एक विवाहित महिला है, जिसका लगभग 4 वर्ष का एक बेटा है। उसे अपने ही घर में रात के समय एक वयस्क पुरुष के खिलाफ खड़ा किया गया था। ऐसी स्थिति में, उसके लिए इस कृत्य का विरोध करना संभव नहीं होगा। इसके अलावा, केवल प्रतिरोध की पेशकश न करने को सहमति नहीं माना जा सकता है।”
न्यायमूर्ति बदर ने अपने निर्णय में कहा कि भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 375 RAPE यह स्पष्ट करती है कि सहमति यौन कृत्य में भाग लेने की इच्छा दिखाने वाले एक स्पष्ट स्वैच्छिक समझौते के रूप में होनी चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा, “धारा 375 का प्रावधान यह स्पष्ट करता है कि केवल इसलिए कि एक महिला प्रवेश के कृत्य का शारीरिक रूप से विरोध नहीं करती है, इसे यौन गतिविधि के लिए सहमति नहीं माना जा सकता है।”
नियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत भी दोषी ठहराया गया था।
पीठ ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री की जांच करते हुए कहा कि पीड़ित की गवाही विश्वसनीय थी और अन्य गवाहों द्वारा भी इसको साबित भी किया गया।
अंततः अदालत ने अपील को आंशिक स्वीकार करते हुए भारतीय दंड संहिता के धारा 376 (बलात्कार) के आरोपों और 452 (घर में अतिक्रमण) के तहत दंडनीय अपराध में अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। परन्तु कोर्ट ने यह नोट किया गया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 506 (आपराधिक धमकी) और एससी / एसटी अधिनियम SC/ST ACT के तहत अपराधों के तहत मामला स्थापित करने के लिए सामग्री कम हो गई और इसलिए, उन्हें उन आरोपों से बरी कर दिया।
केस टाइटल – ISLAM MIAN @ MD.ISLAM VS The State of Bihar
केस नंबर – CRIMINAL APPEAL (SJ) No.1173 of 2017
कोरम – HONOURABLE MR. JUSTICE A. M. BADAR