पेगासस जासूसी मामले को लेकर अभी भी सियासत गरम है। लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि जो लोग इजरायली स्पाईवेयर से जासूसी करवाने का आरोप लगा रहे हैं, वह जांच से भाग रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की ओर से इसको लेकर गठित पैनल दो-दो बार अपील कर चुका है कि आइए, अपनी बात रखिए, फोन जमा कीजिए ताकि उनकी जासूसी के लिए पेगासस स्पाईवेयर के इस्तेमाल किए जाने के आरोपों की तकनीकी जांच की जा सके। लेकिन, लोग सामने आने के लिए तैयार ही नहीं हैं। कहा जा रहा था कि 300 से ज्यादा विपक्षी दल के नेता, पत्रकारों और ऐक्टिविस्ट की जासूसी करवाई गई है, लेकिन जांच पैनल के सामने सिर्फ दो ही लोग पहुंचे और उनमें से भी सिर्फ एक ने अपना बयान दर्ज करवाया है।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि केंद्र सरकार ने 2017 में इजरायल के साथ एक डिफेंस डील में Pegasus को खरीदा था. पिछले साल जुलाई में Pegasus के जरिए जासूसी का दावा किया गया था. दावा था कि केंद्र सरकार ने 300 लोगों की जासूसी की. हालांकि, इन आरोपों की जांच के लिए बनी कमेटी के पास अब तक सिर्फ दो लोगों ने ही अपने मोबाइल जमा कराए हैं.
दरअसल, पिछले साल जुलाई में खोजी पत्रकारों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने दावा किया था कि इजरायली सॉफ्टवेयर Pegasus के जरिए दुनियाभर के 50 हजार से ज्यादा लोगों की जासूसी की गई है. दावा किया गया था कि इन 50 हजार में से 300 नंबर भारतीयों के हैं.
रिपोर्ट में जिन लोगों की जासूसी का दावा किया गया था, उनमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव समेत कई पत्रकारों और एक्टिविस्ट का नाम शामिल था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही है जांच–
सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका के आधार पर कथित पेगासस जासूसी की जांच के लिए पैनल गठित करने का आदेश दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि जब टोरंटो यूनिवर्सिटी के मुंक स्कूल के सिटीजन लैब में एमेनेस्टी इंटरनेशन की ओर से फोरेंसिक जांच करवाई गई थी तो पता चला था कि ऐक्टिविस्ट, पत्रकारों और विपक्ष के नेताओं समेत और लोगों से भी जुड़े कम से कम 14 फोन को पेगासस का इस्तेमाल करके हैक कर लिया गया था. हालांकि, पेगासस बनाने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ NSO का शुरू से दावा रहा है कि वह सिर्फ सरकारी एजेंसियों को ही अपना स्पाईवेयर बेचती है.
फिर क्या हुआ?
– केंद्र सरकार पर जासूसी के आरोप लगने के बाद सड़क से लेकर संसद तक जमकर बवाल हुआ. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए 28 अक्टूबर को 3 सदस्यों की एक कमेटी का गठन किया.
– जांच कमेटी के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आरवी रवींद्रन हैं. जस्टिस रवींद्रन 2005 से 2011 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं. कमेटी में उनके साथ पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट संदीप ओबेराय भी हैं.
– इस कमेटी को 8 हफ्तों में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी. लेकिन सूत्रों का कहना है कि जांच में लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं, जिस कारण जांच धीमी चल रही है.
जांच कमेटी को अब तक क्या-क्या मिला?
– कमेटी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि अभी तक जांच पैनल को सिर्फ दो लोगों ने अपना फोन जांच के लिए दिया है. ये हैं दिल्ली में रहने वाले पत्रकार जे गोपीकृष्णन और झारखंड के ऐक्टिविस्ट रुपेश कुमार. लेकिन, इन दोनों में से भी सिर्फ एक नहीं अपना बयान दर्ज करवाया है.
– इतनी धीमी प्रक्रिया होने से कमेटी की जांच में भी देरी हो रही है. लिहाजा कमेटी ने उन लोगों से सामने आने की अपील की है जिन्हें अपनी जासूसी होने का शक है.