हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट निर्णय का हवाला देते हुए कहा: सात साल से कम सजा मामलों में पुलिस जल्‍दबाजी में गिरफ्तारी न करें-

उच्च न्यायालय High Court द्वारा प्रस्तुत मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि पुलिस को ऐसे मामलों में आरोपितों को गिरफ्तार करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपितों को जमानत दी जा सकती है।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट Punjab And Haryana High Court ने पुलिस Police को सात साल से कम की कैद की सजा के मामले में कहा कि ऐसे मामले में पुलिस को गिरफ्तारी करने में जल्‍दबाजी नहीं दिखानी चाहिए।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने धोखाधड़ी और विश्वासघात के मामले में आरोपित सोनीपत के एक व्‍यक्ति ते अग्रिम जमानत देते हुए यह आदेश पारित दिया।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने कहा कि ऐसे मामलों में आरोपित जमानत के हकदार entitle to get bail हैं। हाई कोर्ट ने अपने जमानत आदेश में स्पष्ट किया कि विस्तृत और कड़ी शर्तें लगाकर आरोपित द्वारा जांच को प्रभावित करने, सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों को डराने-धमकाने और जांच से भागने से रोका जा सकता है ।

न्यायमूर्ति अनूप चितकारा ने उच्चतम न्यायालय द्वारा अर्नेश कुमार बनाम बिहार सरकार पैरा 13 Arnesh Kumar vs. State of Bihar, (2014) 8 SCC 273, (Para 13), मामले में दिए गए फैसले को आधार बनाया है। शीर्ष अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे अपने पुलिस अधिकारियों को निर्देशित करें कि जब अपराध सात साल seven year से कम अवधि के लिए कारावास से दंडनीय हो तो आरोपित को तुरंत पुलिस द्वारा गिरफ्तार न किया जाए।

अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने पहली बार अपराध किया है और उसे सुधार का मौका दिया जाना चाहिए।

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कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय आरोपित को उपलब्ध विभिन्न आनलाइन और आफलाइन तरीकों से जमानत बांड प्रस्तुत करने का विकल्प देना चाहिए।

महिदुल शेख बनाम हरियाणा राज्य, सीआरएम-33030-2021 सीआरए-एस-363-2020 में, 14-01-2022, पैरा 53 पर निर्णय का सज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा की जमानत बांड और फिक्स डिपाजिट के बीच चयन करना आवेदक के स्वविवेक पर निर्भर होगा।

न्यायालय ने कहा कि जमानत बांड Bail Bond के साथ फिक्स डिपाजिट Fix Deposit का विकल्प भी आरोपित को दिया जाना चाहिए। जमानत बांड और फिक्स डिपाजिट के बीच चयन करना आवेदक के स्वविवेक पर निर्भर होगा।

कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि याचिकाकर्ता को भारतीय साक्ष्य अधिनियम Indian Evidence Act की धारा 27 के अनुसार हिरासत में माना जाएगा और वह जांच अधिकारी या किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बुलाए जाने पर जांच में शामिल होगा। जांच में सहयोग न करने की स्थिति में जमानत रद की जा सकेगी।

हाई कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं करता, जांच प्रभावित करता है, शिकायतकर्ता (पीड़ितों) को प्रभावित करने या बैंक खाते का पूरा विवरण देने में विफल रहता है तो इस आधार पर ही जमानत रद की जा सकती है।

केस टाइटल – राजीव कुमार बनाम हरियाणा राज्य
केस नंबर – CRM-M-27476-2022
कोरम – न्यायमूर्ति अनूप चितकारा

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