Haldwani Encroachment On Railway Land Case Why Protesting People And All Over India How Many Encroachment On Railway Land

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के विकास के लिए जमीन सुरक्षित करने के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे ट्रैक पर रह रहे लोगों को हटाने के मामले में रोक लगाने के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को रेलवे ट्रैक के किनारे रह रहे लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करने के लिए 4 हफ्ते में स्कीम बनाकर अदालत को अवगत करने के लिए कहा है। अब इस मामले की सुनवाई 11 सितंबर को होगी। हालांकि, इससे पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि जो वहां रह रहे हैं, वो इंसान हैं, और वे दशकों से रह रहे हैं।

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ भारत संघ/रेलवे द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हल्द्वानी में रेलवे की संपत्तियों पर कथित रूप से अतिक्रमण करने वाले लगभग 50,000 लोगों को बेदखल करने पर रोक लगाने के आदेश में संशोधन की मांग की गई। रेलवे ने कहा कि पिछले साल मानसून के दौरान घुआला नदी के तेज बहाव के कारण रेलवे पटरियों की सुरक्षा करने वाली एक दीवार ढह गई और आग्रह किया कि रेलवे परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए जमीन की एक पट्टी तत्काल उपलब्ध कराई जाए।

हल्द्वानी रेलवे ट्रैक के पास अतिक्रमण हटाने से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘सबसे बड़ी बात यह है कि जो वहां रह रहे हैं, वो इंसान हैं। और वे दशकों से रह रहे हैं… अदालतें निर्दयी नहीं हो सकतीं। अदालतों को भी संतुलन बनाए रखने की जरूरत है। और राज्य को भी कुछ करने की जरूरत है। रेलवे ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। अगर आप लोगों को बेदखल करना चाहते हैं तो नोटिस जारी करें। जनहित याचिका के सहारे क्यों? इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’

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वहीं, सुप्रीम कोर्ट में रेलवे की तरफ से कहा गया कि सरकार वहां वंदे भारत चलाना चाहती है। इसको लेकर प्लेटफॉर्म को बड़ा करने की जरूरत है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम रेलवे की बात को समझ रहे हैं लेकिन इसमें बेलेंस करने की जरूरत है। हम बस ये जानना चाहते हैं कि पुनर्वास को लेकर क्या योजना है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे ने रिकॉर्ड पर कहा है कि उन्हें अपनी जमीनों के बारे में जानकारी नहीं है। आगे बढ़ने का एक रास्ता है…हमें आगे बढ़ने का रास्ता खोजना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि फॉरेस्ट एरिया को छोड़ कर किसी दूसरे लैंड को लेकर विकल्प को तलाशने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में जल्द करवाई की जरूरत है। वहां पर 4365 घर हैं। 50 हजार लोग वहां रह रहे हैं। सुनवाई के दौरान हमें कुछ वीडियो और फोटो दिए गए। कई परिवार वाले कई सालों से रह रहे हैं। इस मामले में केंद्र सरकार को एक पॉलिसी डिसीजन लेना चाहिए। उत्तराखंड के चीफ सेक्रेटरी और केंद्र सरकार के संबंधित विभाग के अधिकारी पुनर्वास योजना को लेकर आपस में बैठक करें। ये पुनर्वास योजना ऐसी हो जिसमें सब सहमत हो। जो परिवार प्रभावित हैं, उनकी तुरंत पहचान होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार हफ्तों के भीतर इस योजना पर काम ही जाना चाहिए। हम पांचवें हफ्ते में सुनवाई करेंगे। बता दें कि इस विवादित जमीन पर 4,000 से अधिक परिवारों के करीब 50,000 लोग रह रहे हैं, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं।

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पीठ ने कहा, “पहली पहल के रूप में जिस भूमि की तुरंत आवश्यकता है, उसे पूर्ण विवरण के साथ पहचाना जाए। इसी तरह उस भूमि पर कब्जा करने की स्थिति में प्रभावित होने वाले परिवारों की भी तुरंत पहचान की जाए।”

यह काम चार सप्ताह के भीतर पूरा किया जाना है। मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर, 2024 को होगी।

वाद शीर्षक – अब्दुल मतीन सिद्दीकी बनाम यूओआई और अन्य।
वाद संख्या – डायरी नंबर 289/2023 और इससे जुड़े मामले।

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