SC ने अनुच्छेद 20 और 22 को (अल्ट्रा वायर्स) घोषित करने वाली याचिका दायर करने पर तीन वकीलों को अपना हलफनामा दायर कर बताने का निर्देश दिया कि किन परिस्थितियों में ऐसी याचिका दायर की

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शीर्ष अदालत ने इस मामले में तीनों वकीलों को अपना हलफनामा दायर कर यह बताने का निर्देश दिया है कि उन्होंने किन परिस्थितियों में कोर्ट के समक्ष ऐसी याचिका दायर की।

अदालत ने कानून की जानकारी की कमी के लिए वकीलों की आलोचना की और कहा कि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) को सिर्फ हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं होना चाहिए। अदालत ने वकीलों को यह बताने का निर्देश दिया कि उन्होंने किन परिस्थितियों में याचिका दायर की है। अदालत ने एओआर पदनाम के दुरुपयोग के बारे में चिंता व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया कि हर याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर नहीं की जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने यह कहते हुए कि उन्होंने कानून के ज्ञान की पूरी कमी दिखाई है भारत के संविधान भाग III के अनुच्छेद 20 और 22 को (अल्ट्रा वायर्स) संविधान का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग वाली याचिका का मसौदा तैयार करने और उसे दाखिल करने को लेकर तीन वकीलों को फटकार लगाई है।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ जिसमे न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा भी शामिल हैं ने कहा कि शीर्ष अदालत में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AOR) रखने का उद्देश्य यह है कि याचिकाओं की प्रारंभिक जांच हो। इसमें कहा गया है कि एओआर पदनाम केवल याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं होना चाहिए।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, शीर्ष अदालत में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) रखने का उद्देश्य यह है कि याचिकाओं की प्रारंभिक जांच हो। इसमें कहा गया है कि एओआर पदनाम केवल याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं होना चाहिए। कोई बस उठकर आ जाता है, आप अपनी फीस जमा कराते हैं और याचिका दायर कर देते हैं। यह स्वीकार्य नही है। आपके बार लाइसेंस रद्द किये जाने चाहिए।

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भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिका कैसे दायर की जा सकती है?

पीठ ने पूछा, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और मसौदा तैयार करने वाले वकील कौन हैं, उन्होंने इस पर हस्ताक्षर कैसे किए? कुछ जिम्मेदारी तो होनी ही चाहिए और आप (बहस करते हुए) सलाह देते हैं, आप कैसे सहमत हुए? बार में आपकी क्या हैसियत है? यह बहुत गंभीर है इसने हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया है कि ऐसी याचिका दायर की गई है। पीठ ने तीनों वकीलों को एक हलफनामा दायर कर यह बताने का निर्देश दिया कि उन्होंने किन परिस्थितियों में अदालत के समक्ष ऐसी याचिका दायर की।

सर्वोच्च न्यायलय द्वारा तमिलनाडु निवासी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई की जा रही थी। जिसमे कहा गया है कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 20 और 22 को, भारत के संविधान, 1950 के भाग III के अधिकारातीत, अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन घोषित किया जाए।

जानकारी हो कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण से संबंधित है। वहीं, अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण से जुड़ा है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 20 और 22 को अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) सहित कुछ अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के क्या हैं नियम?

संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए गए नियमों के अनुसार शीर्ष अदालत में किसी पक्ष की तरफ से ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ का दर्जा रखने वाले वकील ही दलील रख सकते हैं।

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