न्यायमूर्ति एलएन राव, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने रजिस्ट्री से भी कहा कि किसी वकील से प्रभावित होने की जरूरत नहीं है–
दिल्ली में वाहनों पर पाबंदी लगाना संविधान के अनुच्छेद 14 में दिए गए मौलिक अधिकारों का है उल्लंघन. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना ने अदालत से माँगे आठ मिनट–
सर्वोच्च अदालत Supreme Court में एक मामले की सुनवाई के दौरान जजों की एक पीठ ने याचिकाकर्ता वकील Advocate पर कोर्ट का समय बर्बाद करने के एवज में उसपर जुर्माना लगाया. दरअसल, याचिकाकर्ता वकील ने कोर्ट से अपनी बात साबित करने के लिए आठ मिनट का समय मांगा था. वकीन ने दावा किया कि वह अपनी बात साबित कर देगा. बेंच ने वकील की बात मानते हुए शर्त रखी की अगर अदालत वकील की दलीलों से संतुष्ट नहीं हो पाई तो उन पर हर मिनट के हिसाब से रूपए एक लाख Rs.100000/- का जुर्माना लगाया जाएगा.
गौरतलब है की दिल्ली में 10 साल से पुराने डीजल व 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के खिलाफ वकील अनुराग सक्सेना द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति एलएन राव, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने ना केवल इसे खारिज कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता वकील पर जुर्माना भी लगा दिया. साथ ही पीठ ने रजिस्ट्री Registry को हिदायत देते हुए कहा कि किसी भी वकील से प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना से कहा कि ये याचिका फालतू है. साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना से ये भी कहा कि जब नई गाड़ियों से कार्बन उत्सर्जन Carbon Emission का खतरा बना हुआ है, तो ऐसे में पुराने वाहन तो और भी खतरनाक हैं.
न्यायमूर्ति ने याचिका को बताया दुर्भाग्यपूर्ण-
अदालत ने वकील की याचिका को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए गैर-जरूरी अर्जी देने पर अनुराग सक्सेना पर जुर्माना भी लगाया. याचिका में कहा गया कि दिल्ली में इन वाहनों पर पाबंदी लगाना संविधान Constitution के Article – 14 अनुच्छेद 14 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन Violation of Fundamental Right है.
न्यायमूर्ति एलएन राव, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि तत्काल याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है.
कोर्ट ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील को पता होना चाहिए कि संविधान Constitution के Article 32 अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके इस तरहकी राहत की मांग नहीं की जा सकती है, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत है.
इस मामले में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना ने कोर्ट से आठ मिनट देने का आग्रह किया जिसमे वो अपनी बात सिद्ध कर देंगे.जिसपर याचिकाकर्ता वकील अनुराग सक्सेना ने अदालत से अपनी बात साबित करने के लिए केवल आठ मिनट का समय मांगा. वकीन ने कहा कि वह 8 मिनट में अपनी बात साबित कर देंगे. जिसपर बेंच ने वकील की बात मानते हुए ये शर्त रखी की अगर वो अपनी दलील से अदालत को प्रभावित नहीं कर पाए तो कोर्ट हर मिनट के लिए एक लाख रुपए के हिसाब से उनपर जुर्मान लगाएगी.
पीठ ने वकील पर जुर्माना लगाया-
याचिकाकर्ता वकील ने पीठ द्वारा याचिका Petition खारिज होने के बावजूद बहस जारी रखी. जिसपर बेंच ने कहा कि हमने पहले ही कह दिया था कि हम 8 लाख रुपये जुर्माना लगा सकते हैं. लेकिन अदालत Court किसी के लिए भी कठोर नहीं होना चाहती, खासकर जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से वकील हैं. इसलिए हम इस मामले में नरम रुख अपनाते हैं.
अदालत ने मामले को बंद करने से पहले याचिकाकर्ताओं को यह भी चेतावनी दी कि अगर वह आगे से इस तरह के दुस्साहस करेंगे तो अदालत को मामले पर कड़ा रुख अपनाना होगा. फिर पीठ ने रूपए 800000/- लाख की जगह वकील को रूपए पचास हजार रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया. कोर्ट ने आदेश में कहा कि जुर्माने की रकम सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी Supreme Court Legal Services Committee के पास दो हफ्ते में जमा करानी पड़ेगी.
केस टाइटल – अनुराग सक्सेना और अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया & अन्य
केस नंबर – WP नंबर 199/2022
कोरम – न्यायमूर्ति एलएन राव, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई