सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले ‘ब्रेस्ट पकड़ना’ और ‘पजामे का नाड़ा तोड़ना’ पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि ‘ब्रेस्ट पकड़ना’ और ‘पजामे का नाड़ा तोड़ना’ बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को संवेदनशीलता की कमी वाला करार दिया और स्वत: संज्ञान लेते हुए इस पर हस्तक्षेप किया।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
- जस्टिस भूषण आर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि “हमें खेद है कि एक न्यायाधीश ने ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग किया।”
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैराग्राफ (24, 25 और 26) पर गंभीर आपत्ति जताई, जो संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाते हैं।
- कोर्ट ने कहा कि यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला नहीं था, बल्कि चार महीने तक निर्णय सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया था।
- पीड़िता की मां द्वारा दायर याचिका को भी इस मामले में जोड़ते हुए, दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का निर्देश दिया गया।
आगे की कानूनी कार्रवाई
- सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को इस मामले में कोर्ट की सहायता करने को कहा।
- केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया गया।
- अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद मंगलवार को होगी।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला?
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि किसी महिला के ब्रेस्ट पकड़ना और पजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।
- हाईकोर्ट के जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा था कि यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो हो सकता है, लेकिन इसे ‘रेप का प्रयास’ नहीं कहा जा सकता।
- इस फैसले के बाद कानूनी और सामाजिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायपालिका में संवेदनशीलता और न्यायिक जवाबदेही की आवश्यकता को दर्शाता है। अब अगली सुनवाई में इस विवादित आदेश की वैधता पर विस्तार से चर्चा होगी।
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