HDFC बैंक के प्रबंधक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा रद्द, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – न अभियुक्त की भूमिका थी, न जिम्मेदारी

HDFC बैंक के प्रबंधक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा रद्द, सुप्रीम कोर्ट ने कहा - न अभियुक्त की भूमिका थी, न जिम्मेदारी

HDFC बैंक के प्रबंधक के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा रद्द, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – न अभियुक्त की भूमिका थी, न जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने HDFC बैंक के एक प्रबंधक के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के आपराधिक मामले को रद्द करते हुए यह स्पष्ट किया है कि जिस विक्रय प्रमाणपत्र (Sale Certificate) के आधार पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई थी, वह अभियुक्त के कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व जारी किया गया था, और वह उस समय अधिकृत अधिकारी नहीं थे, अतः उनके खिलाफ आपराधिक अभियोजन कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा,

“यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता ने न तो विक्रय प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर किए थे और न ही वह उस समय अधिकृत अधिकारी थे। अतः उनके खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं और उनके विरुद्ध आपराधिक उत्तरदायित्व नहीं ठहराया जा सकता।”


मामले की पृष्ठभूमि:

प्रकरण में अपीलकर्ता HDFC लिमिटेड के त्रिवेंद्रम मुख्यालय में कार्यरत प्रबंधक थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, Palayankottai शाखा के तत्कालीन शाखा प्रबंधक (प्रथम अभियुक्त) द्वारा 2004 में SARFAESI अधिनियम के तहत एक संपत्ति की नीलामी की गई थी क्योंकि मूल उधारकर्ता A. Kannan ने ऋण चुकता नहीं किया था। इस नीलामी में द्वितीय प्रतिवादी (अभियोजनकर्ता) ने 7.25 लाख रुपये में संपत्ति खरीदी।

बाद में यह पता चला कि विवादित संपत्ति पहले ही तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड द्वारा अधिग्रहित की जा चुकी थी। आरोप लगाया गया कि संपत्ति अधिग्रहण की जानकारी छिपाकर सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से संपत्ति बेची गई और इस प्रकार शिकायतकर्ता को धोखा दिया गया।

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इस आधार पर IPC की धाराओं 197, 417, 418, 467, 468 और 420 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें अपीलकर्ता को द्वितीय अभियुक्त बनाया गया। अपीलकर्ता ने मद्रास उच्च न्यायालय में धारा 482 CrPC के तहत याचिका दायर कर आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग की, जो खारिज कर दी गई। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।


सुप्रीम कोर्ट की दलीलें:

पीठ ने यह पाया कि:

  • विक्रय प्रमाणपत्र अभियुक्त के कार्यभार ग्रहण करने से पहले जारी किया गया था।
  • अभियुक्त का न तो नीलामी प्रक्रिया में कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप था, न ही वह अधिकृत अधिकारी थे।
  • अभियुक्त ने नवंबर 2014 में प्रबंधक का पदभार संभाला, जबकि संपूर्ण नीलामी प्रक्रिया पहले ही सम्पन्न हो चुकी थी।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यदि इस मामले को आगे बढ़ने दिया गया तो यह न्याय की घोर विफलता होगी और बिना किसी वैध कारण के अभियुक्त को उत्पीड़न झेलना पड़ेगा।


न्यायिक निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया और अपीलकर्ता के खिलाफ चालान और समस्त आपराधिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया।

मामला शीर्षक: Sivakumar v. The Inspector of Police & Anr.
अपीलकर्ता की ओर से: अधिवक्ता राजेन्द्र साहू
प्रतिवादी राज्य की ओर से: वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता वी. कृष्णमूर्ति

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