सुप्रीम कोर्ट ने मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी की सजा माफी याचिका पर उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी की सजा माफी याचिका पर उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में दोषी रोहित चतुर्वेदी की सजा माफ करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्य स्तरीय समिति की सिफारिश एक सप्ताह के भीतर राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत करे। इसके पश्चात राज्य सरकार को दो सप्ताह के भीतर उचित निर्णय लेना होगा। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को इस संबंध में अपना निर्णय केंद्र सरकार की सहमति हेतु तीन दिनों के भीतर भेजना होगा, जिस पर केंद्र सरकार को एक माह के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य होगा।

मधुमिता शुक्ला हत्याकांड: एक संक्षिप्त पृष्ठभूमि

मधुमिता शुक्ला की हत्या 9 मई, 2003 को लखनऊ में कर दी गई थी। उस समय वह गर्भवती थीं। इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी को मुख्य आरोपी बनाया गया था। जांच के दौरान खुलासा हुआ कि शुक्ला के त्रिपाठी के साथ कथित संबंध थे। इस हत्याकांड में त्रिपाठी की पत्नी समेत अन्य लोगों को भी षड्यंत्रकारी के रूप में आरोपी बनाया गया और उन्हें सजा सुनाई गई।

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को यह चेतावनी दी कि यदि तय समय-सीमा के भीतर प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो 28 मार्च को अगली सुनवाई में दोषी रोहित चतुर्वेदी की अंतरिम जमानत याचिका पर विचार किया जाएगा। चतुर्वेदी के अधिवक्ता ने न्यायालय को सूचित किया कि वह पिछले 25 वर्षों से कारावास में है, अतः प्रक्रिया में देरी होने की स्थिति में उसे अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए।

न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया कि अब यह विधिक स्थिति नहीं रही कि केवल वही राज्य दोषी की सजा माफी पर विचार करेगा, जहां अपराध घटित हुआ था।

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सीबीआई जांच और दोषसिद्धि

इस हत्याकांड की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने की थी और मुकदमे की सुनवाई उत्तराखंड में हुई। निचली अदालत ने अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी, भतीजे रोहित चतुर्वेदी एवं अन्य को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

उत्तर प्रदेश सरकार का तर्क

उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 8 जनवरी 2024 और 13 मई 2022 के फैसलों का हवाला देते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया कि चतुर्वेदी की समयपूर्व रिहाई पर विचार करने का अधिकार उत्तराखंड सरकार का है, क्योंकि मुकदमा वहीं चला था। सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2024 को यह माना कि जिस राज्य में मुकदमा चला है, वही दोषी की समयपूर्व रिहाई पर निर्णय लेने का सक्षम प्राधिकारी होगा।

इसके आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 15 दिसंबर 2023 के आदेश को निरस्त करने की मांग की, जिसमें चतुर्वेदी की रिहाई पर विचार करने के लिए कहा गया था।

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