सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन: पहचान परेड केवल पुष्टिकरण प्रमाण, गवाह की गवाही के बिना साक्ष्य अपनी वैधता खो देती है

सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन: पहचान परेड केवल पुष्टिकरण प्रमाण, गवाह की गवाही के बिना साक्ष्य अपनी वैधता खो देती है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 के तहत पहचान परेड (TIP) केवल पुष्टिकरण प्रमाण (corroborative evidence) होती है। यदि परख पहचान परेड (TIP) में किसी व्यक्ति या वस्तु की पहचान करने वाला गवाह परीक्षण के दौरान पेश नहीं किया जाता है, तो TIP रिपोर्ट, जो उसे पुष्ट या खंडित करने के लिए उपयोगी हो सकती थी, पहचान के उद्देश्य से अपनी साक्ष्यात्मक वैधता खो देती है

मामले की पृष्ठभूमि

शीर्ष अदालत के समक्ष अपील छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 395 एवं 397 तथा शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि (conviction) को बरकरार रखा गया था

न्यायमूर्ति पमिडिघंटम श्री नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा,
“…जब तक गवाह गवाही देने के लिए अदालत में उपस्थित नहीं होता और जिरह (cross-examination) के लिए खुद को प्रस्तुत नहीं करता, यह कैसे निर्धारित किया जा सकता है कि उसने किस आधार पर व्यक्ति या वस्तु की पहचान की? क्योंकि यह पूरी तरह से संभव है कि TIP से पहले अभियुक्त को गवाह को दिखा दिया गया हो या उसे अभियुक्त की पहचान करने के लिए तैयार किया गया हो।”

मामले के तथ्य

मामला 1993 का है, जब एक परिवहन बस में ड्राइवर के पीछे बैठे एक व्यक्ति ने देसी पिस्तौल उसकी कनपटी पर रखकर बस रोकने का आदेश दिया। जैसे ही बस रुकी, आठ लोगों ने यात्रियों से मारपीट कर उनकी संपत्ति लूट ली। एक यात्री को गोली भी मारी गई, जिससे वह घायल हो गया।

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अपराध के बाद सभी आरोपी लूटे गए सामान के साथ फरार हो गए। बस चालक ने वाहन को पुलिस स्टेशन ले जाकर एफआईआर दर्ज कराई। बाद में, अपीलकर्ता (अभियुक्त) को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के समय उसके पास एक देसी पिस्तौल मिली, जिसमें पांच कारतूस थे – दो जिंदा और तीन खाली। उसे पहचान परेड (TIP) में प्रस्तुत किया गया, जहां बस चालक और कंडक्टर ने उसकी पहचान की।

ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट का फैसला

  • निचली अदालत ने डकैती की घटना को साबित मानते हुए अपीलकर्ता को दोषी ठहराया, लेकिन सह-आरोपी को बरी कर दिया।
  • उच्च न्यायालय ने इस फैसले की पुष्टि की।
  • असंतुष्ट अपीलकर्ता ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

खंडपीठ ने पाया कि 35 यात्रियों से भरी चलती बस में आठ सशस्त्र लुटेरों ने डकैती डाली, लेकिन सिर्फ दो अभियुक्तों को ही न्यायिक प्रक्रिया के तहत लाया गया

  • न अपीलकर्ता से, न ही किसी अन्य आरोपी से कोई लूटा गया सामान बरामद हुआ
  • गिरफ्तारी के दौरान मिली देसी पिस्तौल को घटनास्थल से बरामद खाली कारतूस या गोली से जोड़ा नहीं गया
  • एफआईआर और धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज गवाहों के बयान में किसी भी अभियुक्त का नाम नहीं था

पहचान परेड (TIP) की साक्ष्यात्मक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

खंडपीठ ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 9 के तहत TIP एक स्वतंत्र साक्ष्य नहीं है, बल्कि यह केवल पुष्टिकरण प्रमाण है

कोर्ट ने रमेश्वर सिंह बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य (1971) के फैसले का हवाला देते हुए कहा,
“यदि परीक्षण के दौरान TIP में व्यक्ति या वस्तु की पहचान करने वाला गवाह अदालत में पेश नहीं किया जाता, तो TIP रिपोर्ट, जो उसे पुष्ट या खंडित करने के लिए उपयोगी हो सकती थी, पहचान के उद्देश्य से अपनी साक्ष्यात्मक वैधता खो देती है।”

वर्तमान मामले में:

  • TIP को नायब तहसीलदार (PW-7) द्वारा संपन्न किए जाने का प्रमाण दिया गया था।
  • अपीलकर्ता की पहचान तीन गवाहों द्वारा की गई थी, जिनमें से दो ने उसे पहचाना
  • हालांकि, ये तीनों गवाह परीक्षण (ट्रायल) के दौरान पेश नहीं किए गए
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“इसलिए, TIP रिपोर्ट, जो इन गवाहों की गवाही की पुष्टि या खंडन करने के लिए उपयोगी हो सकती थी, कोई साक्ष्यात्मक मूल्य नहीं रखती,” कोर्ट ने कहा।

अपीलकर्ता की गिरफ्तारी पर संदेह

खंडपीठ ने पाया कि:

  • अपीलकर्ता से कोई लूटा गया सामान बरामद नहीं हुआ
  • पिस्तौल को घटनास्थल से बरामद कारतूस से नहीं जोड़ा गया
  • अपीलकर्ता को गिरफ्तार किए जाने की प्रक्रिया भी संदेहास्पद थी
  • सीजर मेमो (seizure memo) गिरफ्तारी के नौ घंटे बाद तैयार किया गया
  • परीक्षण के दौरान प्रस्तुत पिस्तौल और सीजर मेमो में दर्ज पिस्तौल का विवरण अलग था, जिसे ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ जंग लगने की संभावना बताकर नजरअंदाज कर दिया

सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष और निर्णय

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के अपराध को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा

इस आधार पर:
अपील स्वीकार की गई
उच्च न्यायालय और ट्रायल कोर्ट के आदेश रद्द किए गए
अपीलकर्ता को बरी कर दिया गया

वाद शीर्षक – विनोद @ नसमुल्ला बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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