उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश भर में ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तक पहुँच में सुधार होगा

शीर्ष अदालत ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर ग्राम न्यायालयों की स्थापना और कामकाज के बारे में ब्यौरा देने का निर्देश दिया था।

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देश भर में ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तक पहुंच बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

संसद द्वारा 2008 में पारित एक अधिनियम में नागरिकों को उनके दरवाजे पर न्याय तक पहुँच प्रदान करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि सामाजिक, आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण किसी को भी न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए, जमीनी स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया था।

न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों को सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में ‘ग्राम न्यायालय’ स्थापित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस और अन्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि अब तक केवल पाँच से छह प्रतिशत ग्राम न्यायालय ही स्थापित किए गए हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा, “कुछ राज्य कह रहे हैं कि हमें ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे पास न्याय पंचायतें हैं।”

न्यायमूर्ति पी के मिश्रा और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ से भूषण ने कहा, “कुछ राज्य कह रहे हैं कि हमें ग्राम न्यायालयों की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे पास न्याय पंचायतें हैं।” उन्होंने कहा कि न्याय पंचायतें वास्तव में ग्राम न्यायालयों जैसी नहीं हैं, जिनमें न्यायिक अधिकारी होते हैं।

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पीठ ने मामले में न्यायमित्र के रूप में सहायता के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता को नियुक्त किया।

पीठ ने कहा, “जितनी जल्दी ये न्यायालय स्थापित हो जाएं… न्याय तक पहुंच उतनी ही बेहतर होगी।”

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पेश एक अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय 2009 से राज्य सरकार को ग्राम न्यायालय स्थापित करने का अनुरोध करते हुए पत्र लिख रहा है।

पीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा है कि ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए राज्य को बार-बार याद दिलाने के बावजूद मामले में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

शीर्ष न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार को अगली सुनवाई की तारीख से पहले जवाब देने का निर्देश दिया।

इसने मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की।

पीठ ने उन राज्यों या उच्च न्यायालयों से कहा जिन्होंने अभी तक मामले में अपने हलफनामे दाखिल नहीं किए हैं, वे तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें।

12 जुलाई को मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, “हमारे विचार में, अधिक ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तक सस्ती कीमत पर पहुँच और घर-द्वार पर न्याय उपलब्ध कराने के अलावा, निचली अदालतों में लंबित मामलों की बड़ी संख्या में कमी आएगी।”

इसने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था, जिसमें ग्राम न्यायालयों की स्थापना और कामकाज के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई हो, जिसमें उनके लिए उपलब्ध कराए गए बुनियादी ढाँचे भी शामिल हों।

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भूषण ने पहले तर्क दिया था कि ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के तहत वैधानिक रूप से प्रावधान किए गए अनुसार ग्राम न्यायालयों को अधिसूचित करने और स्थापित करने के लिए सभी राज्यों को निर्देश जारी किए जाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा था कि 2008 अधिनियम की धारा 5 और 6 में प्रावधान है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से प्रत्येक ग्राम न्यायालय के लिए एक ‘न्यायाधिकारी’ नियुक्त करेगी, जो प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त होने के योग्य व्यक्ति होगा।

शीर्ष अदालत ने 29 जनवरी, 2020 को उन राज्यों को निर्देश दिया था, जिन्होंने अभी तक ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी नहीं की है, कि वे चार सप्ताह के भीतर ऐसा करें।

इसने उन राज्यों के उच्च न्यायालयों से कहा था, जहाँ ग्राम न्यायालयों का गठन और उसके सदस्यों की नियुक्ति लंबित है, कि वे संबंधित सरकारों के साथ परामर्श की प्रक्रिया में तेजी लाएँ।

शीर्ष अदालत ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर ग्राम न्यायालयों की स्थापना और कामकाज के बारे में ब्यौरा देने का निर्देश दिया था।

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