‘अगर नियुक्तियां चुनिंदा तरीके से की जाएंगी तो इससे वरिष्ठता प्रभावित होगी और युवा वकीलों को बेंच में शामिल करना मुश्किल होगा.’
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि अगर सरकार खुद समस्या का समाधान नहीं करती है तो वह न्यायिक पक्ष पर आदेश पारित कर सकता है.
जजों की नियुक्ति के लिए नामों का चयन रोकने की जरूरत पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की तीखी आलोचना की.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, ‘हमने प्रगति रिपोर्ट की कमी पर अटार्नी जनरल (AG) को अपनी चिंता व्यक्त की है. इसका लंबित रहना बड़ी चिंता का मुद्दा है, क्योंकि यह चुनिंदा तरीके से किया जाता है. अटार्नी जनरल का कहना है कि यह मामला सरकार के समक्ष उठाया गया है. हम उम्मीद करते हैं कि स्थिति ऐसी न हो कि कॉलेजियम या यह अदालत कोई ऐसा निर्णय ले जो स्वीकार्य न हो.’
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘4 नाम लंबित हैं और हाल ही में की गई नियुक्तियां भी चयनात्मक हैं जिस पर हमने पहले भी जोर दिया है. यदि ऐसा किया जाता है तो पारस्परिक वरिष्ठता में गड़बड़ी होती है और इस प्रकार युवा वकीलों को पीठ में शामिल करने के लिए शायद ही अनुकूल हो. दोहराए जाने के बावजूद 5 नाम लंबित हैं. लंबित नामों की इस सूची को बताने की आवश्यकता है. अटार्नी जनरल का कहना है कि सरकार के साथ चर्चा होगी.
सुनवाई के दौरान, पीठ ने बार-बार केंद्र सरकार द्वारा अपनाए गए पिक एंड चूज दृष्टिकोण पर अपनी चिंता व्यक्त की और पंजाब और हरियाणा का उदाहरण दिया और कहा, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में पांच अधिवक्ताओं की पदोन्नति की सिफारिश की, केंद्र ने क्रम संख्या 1 और 2 में रखे गए नामों को नजरअंदाज करते हुए केवल तीन नामों को मंजूरी दी.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कहा, ‘अगर नियुक्तियां चुनिंदा तरीके से की जाएंगी तो इससे वरिष्ठता प्रभावित होगी और युवा वकीलों को बेंच में शामिल करना मुश्किल होगा.’
सुप्रीम कोर्ट पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को यह भी बताया कि 14 नाम सरकार के पास लंबित हैं और पांच नाम कॉलेजियम द्वारा बताए जाने के बावजूद लंबित हैं. जस्टिस कौल ने अटॉर्नी जनरल से पूछा, ‘ये तबादले होने ही चाहिए. अन्यथा, यह सिस्टम में एक बड़ी विसंगति पैदा करता है.’
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से मांगे दिशानिर्देश-
मामले की सुनवाई के दौरान सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अब समय आ गया है कि कोर्ट सरकारी बयानों पर भरोसा करने के बजाय सख्ती बरते. अवमानना के लिए विधि सचिव को बुलाया जाए.
मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा, इस अदालत के लिए दिशानिर्देश तय करने का समय आ गया है, लेकिन यह इस सरकार या किसी अन्य की समस्या नहीं है, ऐसा होता रहा है. एक बार समयसीमा पूरी हो चुकी है. इस पर बेंच ने दोहराया कि, यह पिक एंड चूज हर कीमत पर रुकना चाहिए.’
पीठ अब इस मामले की आगे की सुनवाई 20 नवंबर 2023 को करेगी.
कोर्ट दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी का आरोप भी शामिल था.