सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को EWS को 10% कोटा प्रदान करने पर पुनर्विचार करने का सुझाव-

ECONOMICAL WEAKER SECTION आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को आरक्षण RESERVATION के मामले में सुप्रीम कोर्ट SUPREME COURT ने केंद्र सरकार को “उच्च-स्तरीय नीति पर पुनर्विचार” करने का सुझाव दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सार्वजनिक रूप से 10% कोटा प्रदान करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) की पहचान करने के लिए हवा में ₹8 लाख रुपए की वार्षिक आय सीमा नहीं निकाल सकता. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से ये भी सवाल किया कि क्या ये प्रयास असमानों को समान बनाने का था.

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने ईडब्ल्यूएस के लिए आय मानदंड तय करने में अपनाई गई कार्यप्रणाली की व्याख्या करने में सरकार की अक्षमता पर एक गंभीर सवाल उठाए. कोर्ट संबंधित याचिकाओं के एक समूह की जांच कर रहा है, जिसमें मेडिकल प्रवेश में ऑल इंडिया कोटा में से 10 फीसदी EWS कोटा को चुनौती दी गई है.

आपने क्या किया है वो हमें बताएं

कोर्ट ने केंद्र की तरफ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएम नटराजन से कहा कि आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक या सामाजिक आर्थिक डेटा होना चाहिए. आपने क्या किया है वो हमें बताएं. केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने 8 लाख की सीमा तय करने के आधार को स्पष्ट करने के लिए एक सप्ताह के भीतर केंद्र से हलफनामा मांगा है. कोर्ट ने कहा कि जब पहले से संवैधानिक तौर पर दिया गया 49 फीसदी कोटा अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए है तो ऐसे में 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा देने से 50 फीसदी आरक्षण का नियम भंग हो सकता है.

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इस साल से लागू हो रहा कोटा

10% ईडब्ल्यूएस कोटा 103 वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत पेश किया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष चुनौती दी जा रही है. चूंकि अधिनियम पर अदालत द्वारा रोक नहीं लगाई गई है, इसलिए सरकार ने 29 जुलाई को एक अधिसूचना जारी कर इस साल से मेडिकल के पाठयक्रमों में के लिए AIQ सीटों के भीतर ओबीसी के लिए 27% कोटा के साथ 10% EWS कोटा शुरू किया है. इस फैसले से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी की 2,500 सीटें ओबीसी और 1,000 ईडब्ल्यूएस को मिलेगी. गुरुवार को सुनवाई के लिए आई कई याचिकाओं में इस फैसले को चुनौती दी गई थी.

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि आखिर आय के मानदंड को पूरे देश में समान रूप से कैसे लागू किया जा सकता है?

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इसलिए 8 लाख की सीमा पर हैं सवाल

केंद्र द्वारा निर्धारित ₹8 लाख की आय मानदंड, याचिकाकर्ताओं द्वारा 29 जुलाई के फैसले पर सवाल उठाने के लिए उठाए गए आधारों में से एक था. इस बीच ASG ने तर्क दिया कि आय मानदंड 2010 सिंहो आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों पर आधारित था. मेजर जनरल एस आर सिंहो (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने बनाया था. कोर्ट ने कहा कि इस मानदंड को तय करने से पहले कुछ अभ्यास करना होगा. आप केवल एक ही तर्क देते हैं कि यह ओबीसी के साथ समानता के लिए है, लेकिन यह आपके लिए एक गंभीर संवैधानिक बाधा होगी. आप ₹8 लाख की सीमा लागू करके असमानों को बराबर बना रहे हैं. हमने आपको अपना हलफनामा दाखिल करने की अंतिम तिथि पर दो सप्ताह का समय दिया था और आपको इस तरह के गंभीर मामले में ऐसा करना चाहिए था.

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संवैधानिक सिद्धांतों के लिए हस्तक्षेप जरूरी

कोर्ट ने ये भी कहा कि आप कह सकते हैं कि ये नीति के मुद्दे हैं, लेकिन हमें संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करने के लिए हस्तक्षेप करना होगा. अदालत ने कहा कि ओबीसी के विपरीत, ईडब्ल्यूएस को संवैधानिक योजना के तहत सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जाता है. ओबीसी श्रेणी की क्रीमी लेयर की पहचान उन लोगों द्वारा की जाती है जो उन्नत हो गए हैं और जिनकी वार्षिक आय ₹8 लाख से अधिक है. दूसरी ओर आप ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत लाभार्थियों को शामिल करने के लिए समान आय मानदंड ₹8 लाख तय करते हैं तो आप ओबीसी के एक वर्ग को बाहर करने और ईडब्ल्यूएस को शामिल करने के लिए समान मानदंड का उपयोग करते हैं. क्या यह उचित है? क्या आपने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों जैसे कारकों को ध्यान में रखा है.

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