🔍 आपराधिक अपीलों की लंबिती घटाने हेतु सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश: ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड स्वतः बुलाने का निर्देश
देश की विभिन्न उच्च न्यायालयों में लाखों आपराधिक अपीलों की लंबिती को लेकर गंभीर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जैसे ही किसी दोषसिद्धि या बरी किए जाने के आदेश के विरुद्ध आपराधिक अपील में नोटिस जारी हो, ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड (सॉफ्ट कॉपी में) रजिस्ट्री द्वारा स्वतः मंगाया जाए, ताकि सुनवाई में कोई विलंब न हो।
🧾 मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्देश न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर दायर याचिका In Re Policy Strategy For Grant Of Bail (Suo Moto WP (Crl) No. 4/2021) की सुनवाई के दौरान पारित किया।
कोर्ट ने 22 मार्च 2025 की स्थिति का हवाला देते हुए बताया कि देशभर के उच्च न्यायालयों में 7,24,192 आपराधिक अपीलें लंबित हैं। पीठ ने कहा, “इन मामलों में आरोपी के अनुच्छेद 21 के तहत मूलभूत अधिकार दांव पर होते हैं। अतः इन अपीलों का शीघ्र निस्तारण अत्यंत आवश्यक है।”
📚 कोर्ट द्वारा सुझाए गए कदम
कोर्ट ने कहा कि यह प्रक्रिया सुधार की दिशा में पहला कदम है, और सभी उच्च न्यायालयों को सत्र न्यायालय एवं विशेष न्यायालयों से जुड़े आपराधिक मामलों के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तत्काल प्रारंभ करना चाहिए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि SUVAS (Supreme Court Vidhik Anuvaad Software) नामक एक AI आधारित अनुवाद उपकरण सभी उच्च न्यायालयों को पहले ही उपलब्ध कराया जा चुका है। इसका उपयोग न केवल निर्णयों के अनुवाद में बल्कि रिकॉर्ड के अनुवाद में भी किया जा सकता है। हालांकि, अनुवाद की सटीकता की जाँच अनुवादकों द्वारा अवश्य की जानी चाहिए।
⚖️ न्यायिक तर्क और सुझाव
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं लिज मैथ्यू और गौरव अग्रवाल (एमिकस क्यूरी) द्वारा दाखिल विस्तृत नोट पर विचार किया, जिसमें जमानत नीति और आपराधिक अपीलों की लंबिती पर ठोस सुझाव दिए गए थे।
कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों में रिक्तियों की स्थिति का सीधा असर लंबित मामलों की संख्या पर पड़ता है। साथ ही, जिन उच्च न्यायालयों में एक से अधिक पीठें हैं, वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपीलों की सुनवाई की संभावना पर विचार करें।
इसके अलावा, पीठ ने यह भी कहा कि क्रिमिनल अपीलों हेतु समर्पित पीठें होनी चाहिए और रोस्टर का युक्तिकरण किया जाए।
बार-बार स्थगन की प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि किसी पक्ष की ओर से सहयोग न मिले, तो Bani Singh बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय का पालन करते हुए न्यायालय कानूनी सहायता वकील की नियुक्ति कर सकता है।
🗂️ प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देश
कोर्ट ने कहा, “हम उच्च न्यायालयों से अनुरोध करते हैं कि वे इस आदेश, नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम (NCMS) की बेसलाइन रिपोर्ट, उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों के निस्तारण हेतु मॉडल एक्शन प्लान तथा एमिकस क्यूरी द्वारा सुझाए गए उपायों पर विचार करें और प्रक्रियात्मक नियमों अथवा प्रैक्टिस गाइडलाइंस में आवश्यक संशोधन करें।”
📌 मुख्य आदेश
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया:
“यह आदर्श होगा यदि सभी उच्च न्यायालय अपने प्रक्रियात्मक नियमों में संशोधन करें और यह प्रावधान करें कि जैसे ही दोषसिद्धि या बरी किए जाने के आदेश के विरुद्ध अपील में नोटिस जारी हो, रजिस्ट्री स्वतः ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड (सॉफ्ट कॉपी) प्राप्त करे, ताकि सुनवाई में देरी न हो।”
कोर्ट ने NCMS की रिपोर्ट तथा एमिकस क्यूरी के सुझावों (अनुच्छेद 14 व 16) को अपनाने की सिफारिश की और स्पष्ट किया कि इन रिपोर्टों की प्रतियां सभी उच्च न्यायालयों को उपलब्ध कराई जा चुकी हैं।
⏳ आगे की कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा है कि वे इस आदेश के आलोक में दो माह के भीतर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करें और आपराधिक अपीलों के शीघ्र निपटान हेतु कार्ययोजना प्रस्तुत करें।
Leave a Reply