सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि बर्खास्त कर्मचारी को बैक वेज (पिछले वेतन) का भुगतान स्वचालित रूप से नहीं किया जा सकता, और कर्मचारी को यह सिद्ध करने की आवश्यकता होगी कि वह इस अवधि में बेरोजगार रहा।
यह निर्णय महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के एक रिव्यू पेटिशन को स्वीकार करने के फैसले के खिलाफ दायर सिविल अपील में सुनाया गया।
पीठ की टिप्पणी
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की दो-न्यायाधीशीय पीठ ने कहा-
“यदि किसी बर्खास्त कर्मचारी की बर्खास्तगी को न्यायालय द्वारा रद्द किया जाता है, तो उसे बैक वेज का भुगतान करना कोई स्वतः प्रदान किया जाने वाला राहत नहीं है। पूर्ण या आंशिक बैक वेज प्रदान करने से पहले औद्योगिक न्यायाधिकरण या संबद्ध न्यायालय को यह पता लगाना आवश्यक है कि बर्खास्तगी और पुनः नियुक्ति के बीच के अंतराल में कर्मचारी ने कोई लाभदायक रोजगार प्राप्त किया था या नहीं।”
पीठ ने आगे कहा कि यदि कर्मचारी यह स्वीकार करता है कि वह लाभदायक रोजगार में था और अपनी आय व अन्य विवरण प्रस्तुत करता है, या यदि वह दावा करता है कि वह बेरोजगार था लेकिन नियोक्ता यह साबित कर देता है कि वह रोजगार में था, तो बैक वेज देने या न देने का निर्णय न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा।
प्रमाण का भार (Burden of Proof)
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सबसे पहले कर्मचारी को यह प्रमाणित करना होगा कि वह बेरोजगार था। यदि नियोक्ता दावा करता है कि कर्मचारी किसी अन्य रोजगार में संलग्न था, तो इसे साबित करने का भार नियोक्ता पर होगा।
कोर्ट ने कहा-
“यदि नियोक्ता द्वारा किसी कर्मचारी को अवैध रूप से कार्य करने से रोका जाता है और बर्खास्तगी को बाद में अवैध करार दिया जाता है, तो ऐसे कर्मचारी को समुचित राहत प्रदान करना उसका वैध अधिकार है।”
मामला:
अपीलकर्ता MSRTC ने 1988 में उत्तरदाता को बस चालक के रूप में नियुक्त किया था। 1996 में एक दुर्घटना हुई, जिसमें MSRTC की बस एक ट्रक से टकरा गई। इस दुर्घटना में दो यात्रियों की मृत्यु हो गई और कई अन्य घायल हुए। इस दुर्घटना से निगम को ₹45,000/- का नुकसान हुआ।
इसके बाद विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत जांच हुई और डिविजनल ट्रैफिक ऑफिसर (DTO) ने उत्तरदाता को सेवा से बर्खास्त कर दिया।
उत्तरदाता ने पहले विभागीय अपील दायर की, जो असफल रही। इसके बाद, उसने औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत औद्योगिक न्यायालय में मामला उठाया, जहां न्यायालय ने पुनः बहाली से इनकार कर दिया।
इसके बाद उत्तरदाता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसे एकल पीठ ने खारिज कर दिया।
हालांकि, उत्तरदाता को यह पता चला कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (MVA) के तहत मृतकों और घायलों के परिवारों द्वारा मुआवजा दावा याचिका दायर की गई थी। इस जानकारी के आधार पर उसने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका (रिव्यू पेटिशन) दायर की, जिसे स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद MSRTC ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट की कानूनी व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यदि कोई कर्मचारी यह दावा करता है कि वह बेरोजगार था, तो यह उसकी विशेष जानकारी में आता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 106 के अनुसार, यह साबित करने की जिम्मेदारी कर्मचारी की होगी।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 17-बी के तहत, यदि किसी कर्मचारी को पुनः नियुक्त करने का आदेश दिया गया हो और नियोक्ता उस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देता है, तो कर्मचारी “अंतिम आहरित वेतन” पाने का हकदार होता है।
कोर्ट ने कहा:
“यदि कोई कर्मचारी शपथ पत्र पर यह बयान देता है कि वह बेरोजगार है, तो उसके बाद नियोक्ता को यह साबित करना होगा कि कर्मचारी किसी अन्य नौकरी में संलग्न था।”
न्यायालय का अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि उत्तरदाता के आय संबंधी सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह स्पष्ट था कि MSRTC ने उसे गलत तरीके से नौकरी से निकाला। अतः न्यायालय ने पूर्ण बैक वेज देने के आदेश को संशोधित करते हुए उसे 75% बैक वेज देने का निर्देश दिया।
अदालत ने आदेश दिया:
“महादेव (उत्तरदाता) अपनी बर्खास्तगी की तारीख से सेवानिवृत्ति तक के 75% बैक वेज का हकदार होगा। इसके अतिरिक्त, उसे पूरी टर्मिनल सुविधाएं भी प्रदान की जाएंगी, और यदि उसे कभी बर्खास्त नहीं किया गया होता तो उसे जो ब्याज मिलता, वह भी 6% वार्षिक ब्याज दर के साथ प्रदान किया जाएगा।”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उत्तरदाता को 75% बैक वेज देने का आदेश दिया और मामले का निस्तारण कर दिया।
वाद शीर्षक – महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम बनाम महादेव कृष्ण नाइक
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