सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में Vihaan Kumar बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को तत्काल उस गिरफ्तारी के कारणों की सूचना देना अनिवार्य है। यदि गिरफ्तारी के समय आरोपी को उस कारण की जानकारी नहीं दी जाती है, चाहे बाद में रिमांड या चार्जशीट दाखिल की जाए, तो वह गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 22(1) के उल्लंघन के कारण अवैध मानी जाएगी।
मामले की पृष्ठभूमि
इस अपील में, आरोपी श्री Vihaan Kumar ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी, जिसने यह कहा था कि गिरफ्तारी के समय गिरफ्तार अधिकारी ने उसे गिरफ्तारी के कारणों से अवगत नहीं कराया। आरोपी और मृतक के बीच एक लिव-इन रिश्ता था, और अभियोजन पक्ष का मुख्य आधार आरोपी द्वारा कई गवाहों के समक्ष न्यायिक प्रक्रिया के बाहर दी गई कबूलियाँ थीं। प्रारंभिक सुनवाई में सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय ने इन कबूलियों को पर्याप्त साक्ष्य मानते हुए आरोपी को दोषी ठहराया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन अतिरिक्त न्यायिक कबूलियों की विश्वसनीयता और स्वेच्छा पर संदेह करते हुए पाया कि:
- आरोपी को गिरफ्तारी के समय उसके गिरफ्तारी के कारणों की स्पष्ट और प्रभावी सूचना नहीं दी गई थी।
- आरोपी के खिलाफ केवल गवाहों की कथित कबूलियाँ थीं, जिनमें से कुछ ने यह स्वीकार किया कि आरोपी “भ्रमित मानसिक स्थिति” में था और उनके बयान में महत्वपूर्ण जानकारियाँ अनुपस्थित थीं।
- आरोपी के वस्त्रों पर रक्त के दाग या फोरेंसिक साक्ष्यों की कमी ने अभियोजन पक्ष की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति नोंगमेइकापम कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने दिनांक 04 फरवरी 2025 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि:
- गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा गिरफ्तार के कारणों की जानकारी नहीं दी गई, जिससे अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन हुआ।
- आरोपी की मौलिक गरिमा (आर्टिकल 21) भी हाथकफिंग और अस्पताल की बेड से जुड़ी अस्वीकृत प्रक्रियाओं के कारण प्रभावित हुई।
- इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, चाहे उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो या रिमांड आदेश जारी किए गए हों, क्योंकि कोई भी बाद के आदेश इस मौलिक संवैधानिक त्रुटि को ठीक नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य को गिरफ्तार अधिकारियों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए, ताकि गिरफ्तारी के समय आरोपी को उसके अधिकारों की पूरी जानकारी दी जा सके और उसकी उचित सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
न्यायालय का विश्लेषण और विधिक तर्क
सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर जोर दिया:
- अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्यता: हर गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत और उस भाषा में जानकारी दी जानी चाहिए, जिसे वह समझ सके, ताकि वह अपने कानूनी अधिकारों का संरक्षण कर सके।
- गिरफ्तारी के बाद के आदेशों की सीमाएँ: रिमांड, चार्जशीट दाखिल करने या अन्य न्यायिक आदेश द्वारा गिरफ्तारी की मौलिक त्रुटि को ठीक नहीं किया जा सकता।
- मानव गरिमा का संरक्षण: आरोपी को अस्पताल में हाथकफिंग और बेड से बांधकर रखना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जिससे उसके मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं।
उद्धृत नजीरें एवं कानूनी आधार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में निम्नलिखित नजीरों का हवाला दिया:
- Pankaj Bansal बनाम Union of India (2024) 7 SCC 576: जिसमें गिरफ्तारी के कारणों की प्रभावी सूचना पर जोर दिया गया।
- Prabir Purkayatha बनाम State (NCT of Delhi) (2024) 8 SCC 254: जिसमें गिरफ्तारी के समय उचित भाषा में सूचना न दी जाने पर गिरफ्तारी को असंवैधानिक घोषित किया गया।
- Harikisan बनाम State of Maharashtra (1962) SCC OnLine SC 117: जिसमें अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी के कारणों की सूचना की समानता पर प्रकाश डाला गया।
- Lallubhai Jogibhai Patel बनाम Union of India (1981) 2 SCC 427: जिसमें “संचार” को केवल औपचारिकता से बढ़कर प्रभावी जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता बताई गई।
निष्कर्ष
Vihaan Kumar बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को उचित सूचना नहीं देने पर, बाद में रिमांड या चार्जशीट के आदेश भी उस गिरफ्तारी की असंवैधानिकता को समाप्त नहीं कर सकते। यह निर्णय न केवल गिरफ्तारी प्रक्रिया में संविधान द्वारा निर्धारित मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि पुलिस अधिकारियों के लिए भी एक स्पष्ट संदेश देता है कि गिरफ्तारी के समय उचित प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
इस landmark निर्णय से नियोक्ता और न्यायपालिका को यह निर्देश मिलता है कि “संदेह जितना भी प्रबल हो, वह ठोस साक्ष्य का विकल्प नहीं हो सकता,” और आरोपी को उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने पर तुरंत राहत दी जानी चाहिए।
यह निर्णय भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में संवैधानिक संरक्षण और मानव गरिमा की सुरक्षा के महत्व को पुनः स्थापित करता है, जिससे भविष्य में इसी प्रकार की त्रुटियों से निपटने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलते हैं।
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