सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: हत्या के मामले में उच्च न्यायलय के फैसले को पलट, आजीवन कारावास सजा को किया बरकरार-

Supreme Court सर्वोच्च अदालत ने कहा कि गवाहों के सबूतों को केवल इस आधार पर नकारा नहीं किया जा सकता है कि वे मृतक के रिश्तेदार थे।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना & आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने 2007 की हत्या के एक मामले में तीन लोगों को बरी कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि गवाहों के सबूतों को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि वे मृतक के रिश्तेदार थे।

न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि चश्मदीदों और घायल चश्मदीद गवाहों के बयान में कोई बड़ा या भौतिक विरोधाभास नहीं है और जहां तक इन तीनों आरोपियों का संबंध है, वे सुसंगत हैं।

उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए तर्कों को पढ़ने के बाद हमारी राय है कि उच्च न्यायालय ने कुछ छोटे अंतर्विरोधों को अनावश्यक रूप से महत्व दिया है।

उच्चतम अदालत ने राज्य सरकार और साथ ही मूल शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपीलों पर अपना फैसला सुनाया जिन्होंने उच्च न्यायालय के फरवरी 2018 के फैसले को चुनौती दी थी। तीन आरोपियों को बरी करने के अलावा, उच्च न्यायालय ने शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील को भी खारिज कर दिया था जिसने मामले में आठ अन्य आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, 18 जनवरी 2007 को सभी आरोपियों ने अवैध रूप से बैठक की थी और एक वाहन को घेर लिया था जिसमें पीड़ित राजशेखर रेड्डी और अन्य यात्रा कर रहे थे।

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शीर्ष अदालत ने निचली अदालत के उस आदेश को बहाल कर दिया जिसमें तीन आरोपियों को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

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