इलाहाबाद हाईकोर्ट Allahabad High Court में लंबित आपराधिक अपीलों का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने वहां के महारजिस्ट्रार Registrar General को निर्देश दिया है कि इन अपीलों को सूचीबद्ध करने के लिए अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया की जानकारी उपलब्ध कराएं।
खासकर ऐसी अपीलों में जहां वादियों को उम्रकैद की सजा मिली हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताने के लिए कहा है कि लंबित अपीलों की सुनवाई के लिए आमतौर पर कितनी पीठें उपलब्ध हैं और क्या 10 वर्ष या उससे कम सजा वाले मामलों में अपीलों को सूचीबद्ध करने के लिए कोई विशेष तंत्र है?
न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने पाया कि एक याचिकाकर्ता ने सात साल की सजा में से साढ़े तीन साल, जबकि दूसरे याचिकाकर्ता ने 10 साल की सजा में से साढ़े आठ साल साल जेल में काट लिए हैं। इन दोनों की अपील 2019 से इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित है।
पीठ ने कहा, उसके सामने यह शिकायत उठाई गई है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 389 के तहत राहत के लिए दिए गए आवेदन हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध नहीं हो रहे हैं। धारा 389 अपील लंबित होने के दौरान सजा के निलंबन और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने से संबंधित है।
उत्तर प्रदेश राज्य में बड़ी संख्या में अपील मामले वर्षों से हैं लंबित-
पीठ ने कहा, हमने उत्तर प्रदेश राज्य में लंबित अपीलों में इसी तरह की स्थितियां देखी हैं। इस तरह के मामलों के तथ्यों के अनुसार वहां अपील काफी बड़ी संख्या में वर्षों से लंबित हैं। इसलिए हम मौजूदा मामले को एक परीक्षण मामले के रूप में लेते हुए हम हाईकोर्ट के महारजिस्ट्रार को प्रतिवादी के तौर पर जोड़ते हुए नोटिस जारी कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत Supreme Court ने महारजिस्ट्रार Registrar General को 11 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।