अनुच्छेद 32 के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, याचिकाकर्ता अधिवक्ता पर ₹5 लाख का जुर्माना
नई दिल्ली, 15 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद से संबंधित एक मामले में दाखिल की गई याचिका को अनुचित करार देते हुए याचिकाकर्ता अधिवक्ता संदीप तोदी पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाया है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह जुर्माना उस स्थिति में लगाया जब वकील ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका को वापस लेने का अनुरोध किया।
पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रकार की तुच्छ और अनुचित याचिकाओं से सर्वोच्च न्यायालय का कार्य वातावरण दूषित होता है और किसी भी विवेकशील अधिवक्ता से ऐसी याचिका की अपेक्षा नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने सुनवाई के दौरान कहा:
“आपने अनुच्छेद 32 के गंभीर संवैधानिक प्रावधान का दुरुपयोग किया है। यह न्यायालय के वातावरण को दूषित करने वाला प्रयास है।”
अनुच्छेद 32 का उद्देश्य और उसका दुरुपयोग
संविधान का अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए नागरिकों को सीधे सुप्रीम कोर्ट से राहत प्राप्त करने का अधिकार देता है। यह प्रावधान भारतीय संविधान का एक मूल स्तंभ माना जाता है। परंतु पीठ ने स्पष्ट किया कि पारिवारिक विवाद जैसे निजी और दीवानी प्रकृति के मामले में अनुच्छेद 32 के माध्यम से हस्तक्षेप की मांग न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
मामले का विवरण
अधिवक्ता संदीप तोदी द्वारा दायर याचिका में फैमिली कोर्ट, मुंबई द्वारा दिनांक 25 सितंबर 2019 को प्रतिवादी संख्या 4 नेहा तोदी उर्फ नेहा सीताराम अग्रवाल को प्रदान की गई राहतों पर स्थगन लगाने की मांग की गई थी। याचिका में केंद्र सरकार, मुंबई की पारिवारिक अदालत और बॉम्बे उच्च न्यायालय को प्रतिवादी बनाया गया था।
याचिका 25 मार्च को दाखिल की गई थी, जिसमें सभी राहतों पर एकतरफा स्थगन आदेश की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान जब पीठ ने याचिका की प्रकृति पर सवाल उठाए, तब अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने का अनुरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
पीठ ने यह कहते हुए याचिका को वापस लेने की अनुमति दी कि यदि इसे सरलता से अनुमति दी गई, तो इससे गलत नज़ीर स्थापित होगी। इसके साथ ही अधिवक्ता पर ₹5 लाख का जुर्माना लगाते हुए उसे चार सप्ताह के भीतर यह राशि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के खाते में जमा करने का निर्देश दिया गया। मामले को छह सप्ताह बाद पुनः सूचीबद्ध करने का आदेश दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्देश का पालन हुआ है या नहीं।
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 32 जैसे संवैधानिक उपायों के प्रति गंभीर दृष्टिकोण को दर्शाता है और यह संकेत देता है कि न्यायालय ऐसे अधिकारों के दुरुपयोग को किसी भी स्थिति में सहन नहीं करेगा।
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