मरीज़ों के हक़ में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: ‘डॉक्टर’ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत आते है – जानिए विस्तार से

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देश की सर्वोच्च अदालत Supreme Court ने शुक्रवार को दिए एक फैसले से यह साफ हो गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ कंजूमर कोर्ट Consumer Court में शिकायत की जा सकती है। इससे आम लोगों को उन प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ शिकायत करने में सुविधा होगी, जो पैसे तो खूब वसूलते हैं, लेकिन इलाज में लापरवाही के मामलों से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निजी अस्पताल, स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टरों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है।

कोर्ट ने मेडिकोज लीगल एक्शन ग्रुप द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया और कहा कि सिर्फ इसलिए कि 1986 के सीपीए को 2019 अधिनियम द्वारा निरस्त कर दिया गया है, इसके परिणामस्वरूप डॉक्टरों द्वारा मरीजों को दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं को टर्म सर्विस Service की परिभाषा से बाहर नहीं किया जाएगा।

देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि हेल्थकेयर सर्विसेज और डॉक्टर्स (Healthcare Services and Doctors) कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 (Consumer Protection Act, 2019) के दायरे से बाहर नहीं हैं।

इससे पहले, बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठन की याचिका को खारिज कर दिया था कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती है।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सही करार दिया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था डॉक्टर्स और हेल्थकेयर सर्विसेज कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 Consumer Protection Act, 1986 के दायरे में आते हैं। दरअसल, मेडिकोस लीगल एक्शन ग्रुप नाम के एक एनजीओ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था।

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एनजीओ के वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा 1986 के कानून में सर्विसेज की परिभाषा में हेल्थकेयर का जिक्र नहीं है और इसे सर्विसेज की परिभाषा में शामिल करने का प्रस्ताव था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके जवाब में बेंच ने कहा कि कानून में कहा गया है “किसी तरह की सर्विसेज”। उसने यह भी कहा कि सर्विस की परिभाषा बहुत व्यापक है और अगर संसद इसे सर्विस की परिभाषा से बाहर करना चाहती थी तो उसने इसके बारे में बताया होता।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “वास्तव में आपके क्लाइंट ने खुद का लक्ष्य तय कर लिया है। डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही के कुछ मामले आए फिर उन्होंने इस मामले में PIL दाखिल करने का फैसला कर लिया। यह पीआईएल मोटिवेटेड है।”

बेंच ने यह भी कहा कि हेल्थकेयर को परिभाषा के दायरे से इसलिए हटा दिया गया कि खुद ‘सर्विसेज’ की परिभाषा बहुत व्यापक है और सदन में मंत्री के भाषण से जो कानून में कहा गया है, उसका महत्व खत्म नहीं हो सकता।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हाल में अपने एक फैसले का हवाला दिया कि यह मामला टेलीकॉम सर्विसेज के मामले से मिलता है, जिसमें यह (टेलीकॉम सर्विसेज) 1986 के कानून में नहीं था, लेकिन कोर्ट ने कहा था कि इसका मतलब है कि यह ‘सर्विसेज ऑफ एनी डिस्क्रिप्शन’ के तहत कवर्ड है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह साफ हो गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के खिलाफ कंजूमर कोर्ट में शिकायत की जा सकती है। इससे आम लोगों को उन प्राइवेट अस्पतालों के खिलाफ शिकायत करने में सुविधा होगी, जो पैसे तो खूब वसूलते हैं, लेकिन इलाज में लापरवाही के मामलों से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।

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केस टाइटल – मेडिकोज लीगल एक्शन ग्रुप बनाम यूओआई
केस नंबर – एसएलपी सिविल 19374/2021

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